कोई आवाज तक न निकल पायी। इसके बाद वह भुजाली पोंछकर अपनी कमर में रखी और नींद में मस्त सोये हुए कुँअर इन्द्रजीतसिंह के पास आकर खड़ा हो गया। कमर से एक शीशी निकाली और बहुत सम्हालकर कुमार की नाक से लगाई। इस शीशी में तेज बेहोशी की दवा थी। कुमार के बेहोश हो जाने के बाद उसने अपनी कमर से एक लोई खोली और उसमें उनकी गठरी बाँध दरवाजे पर पर्दे के पास आकर देखने लगा कि आगे की तरफ सन्नाटा है या नहीं।
इस समय पहरे वाले गश्त लगाते हुए खेमे के पीछे की तरफ निकल गये थे। आगे सन्नाटा पाकर उसने कुमार की गठरी उठाई और खेमे के बाहर हो अपने को बचाता हुआ लश्कर से दूर निकल गया। लश्कर से कुछ दूरी पर एक रथ खड़ा था जिसमें दो मजबूत मुश्की रंग के घोड़े जुते हुए थे। कोचवान तैयार बैठा था। गठरी खोलकर कुमार को उसी पर लिटा दिया और खुद भी सवार हो रथ हाँकने का हुक्म दिया।
रथ थोड़ी ही दूर गया था कि सारथी को मालूम हो गया कि पीछे कोई सवार आ रहा है। उसने घबड़ा कर अन्दर बैठे हुए आदमी से कहा कि कोई सवार बराबर रथ के साथ चला आ रहा है।
रथ और तेज किया गया, मगर सवार ने पीछा न छोड़ा। सुबह होते-होते रथ बहुत दूर निकल गया और ऐसी जगह पहुँचा जहाँ सड़क के दोनों तरफ घना जंगल था। तब वह सवार घोड़ा बढ़ाकर रथ के बराबर आया और बोला, "बस, अब रथ रोक लो!"
सारथी––तुम कौन हो जो तुम्हारे कहने से रथ रोका जाय?
सवार––हम तुम्हारे बाप हैं! बस खबरदार, अब रथ आगे न बढ़ने पावे!
इस सवार के हाथ में एक बरछी थी। जब सारथी ने उसकी बात न सुनी तो लाचार उसने बरछी मारी। चोट खाकर सारथी जमीन पर गिर पड़ा। रथ के घोड़े भड़ककर और तेजी के साथ भागे और पहिया सारथी के ऊपर से होकर निकल गया।
सवार ने घोड़े को बरछी मारी। एक घोड़ा जख्मी होकर गिर पड़ा, दूसरा घोड़ा भी रुक गया। वह आदमी जो रथ के अन्दर बैठा हुआ था, कूदकर तलवार खींचकर सवार के सामने आ खड़ा हुआ। बात की बात में सवार ने उसे भी बेजान कर दिया और घोड़े के नीचे उतर पड़ा। यह सवार नकाबपोश था।
बरछी गाड़ कर सवार ने घोड़े को उससे बाँध दिया और बड़ी होशियारी से कुँअर इन्द्रजीतसिंह को रथ से नीचे उतारा। सड़क के दोनों तरफ घना जंगल था। कुमार को उठाकर जंगल में ले गया और एक सलई के पेड़ के नीचे रख लौट आया और अपने घोड़े पर सवार हो फिर उसी जगह पहुँचने के बाद कुमार के पास बैठ उनको होश में लाने की फिक्र करने लगा।
सुबह की ठण्डी हवा लगने पर कुमार होश में आये और घबड़ा कर उठ बैठे। सवार तलवार खींच सामने खड़ा हो गया। कुमार भी सँभल कर खड़े हो गये और बोले––
कुमार––क्या तुम हमें यहाँ लाये हो?