सेनापति जो नौगढ़ में थे) और नाहरसिंह इत्यादि को साथ लिये राजा वीरेन्द्रसिंह भी आ पहँचे और सब लोग अपने-अपने खेमे में उतरे। पन्नालाल गयाजी में और रामनारायण तथा चुन्नीलाल चुनारगढ़ में रखे गये। इस लड़ाई के लिए सेनापति की पदवी नाहरसिंह को दी गई। तीसरे दिन और भी फौज आ जाने पर पाँच झण्डे (पचास हजार फौज का निशान) खड़े किये गये। बहादुरों के चेहरों पर खुशी मालूम होती थी। सब इसी फिक में थे कि जहाँ तक हो लड़ाई जल्दी छिड़ जाय और बेशक एक ही दो दिन में लड़ाई छिड़ जाने की उम्मीद थी, मगर वीरेन्द्र सिंह के लश्कर पर यकायक ऐसी आफत आ पड़ी कि कुछ दिनों तक लड़ाई रुकी रही। इस आफत के आने का किसी को स्वप्न में भी गुमान न था जिसका हाल हम आगे चल कर लिखेंगे।
राजा दिग्विजयसिंह का पत्र लेकर उनका एक ऐयार राजा वीरेन्द्रसिंह के पास आया। वीरेन्द्रसिंह ने पत्र लेकर मुंशी को पढ़ने के लिए दिया। उसमें जो कुछ लिखा था, उसका संक्षेप यह है-
"हमारे-आपके बीच कभी दुश्मनी नहीं रही, तो भी न मालूम, आपस में लड़ने या बिगाड़ पैदा करने का इरादा आपने क्यों किया। खैर, इसका सबब जो कुछ हो हम नहीं कह सकते मगर इतना याद रखना चाहिए कि पचास वर्ष लड़ कर भी यह किला आप हमसे नहीं ले सकते। अगर हम चुपचाप बैठे रहें तो भी आप हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, फिर भी हम आपसे लड़ेंगे और मैदान में निकल कर बहादुरी दिखायेंगे। अगर आपको अपनी बहादुरी या जवाँमर्दी का घमंड है तो फौज को जान क्यों लेते हैं। एक पर एक अड़ के फैसला कर लीजिये। बहादुरों की कार्रवाई देखने के बाद हमसे और आपसे द्वन्द्व-युद्ध हो जाय। आप हम पर फतह पायें तो यह राज्य आपका हो जाय, नहीं तो आप हमारे मातहत समझे जायँ। अफसोस, इस समय हमारा लड़का मौजूद नहीं है, अगर होता तो आपके दोनों लड़कों से वह अकेला ही भिड़ जाता।"
इस पत्र के जवाब में जो कुछ राजा वीरेन्द्रसिंह ने लिखा, हम उसका भी संक्षेप नीचे लिख देते हैं-
"आप हमारे राज्य में घुस कर किशोरी को ले गये, क्या यह आपकी जबर्दस्ती नहीं है? क्या इसे लड़ाई की बुनियाद कायम करना नहीं कह सकते? हाँ, अगर आप किशोरी को इज्जत के साथ हमारे पास भेज दें, तो हम बेशक अपने घर लौट जायँगे। नहीं तो याद रहे, हम इस किले की एक-एक ईट उखाड़ कर फेंक देंगे, जिसकी मजबूती पर आप इतना घमंड करते हैं। हम लोग द्वन्द्व-युद्ध करने के लिए भी तैयार हैं, जिसका जी चाहे एक पर एक लड़ के हौसला निकाल ले, आपका लड़का मेरे यहाँ कैद है। यदि आप किशोरी को हमारे पास भेज दें, तो हम उसे छोड़ने के लिए तैयार हैं।"
इस पत्र के जवाब में रोहतासगढ़ के किले से तोप की एक आवाज आई। अब लड़ाई में किसी तरह का शक न रहा। दोनों तरफ के ऐयार अपनी-अपनी कार्रवाई दिखाने पर मुस्तैद हो गये, और उन लोगों ने जो कुछ किया, उसका हाल आगे चलकर मालूम होगा।
रोहतासगढ़ किले के अन्दर राजमहल की अटारियों पर चढ़ी हुई बहुत-सी