पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१६२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
154
 


ही में ले जाने पड़ें। नहीं, अगर मेरे साथ जबर्दस्ती की जायगी तो जरूर ऐसा करूँगी और सिवाय उसके, जिसके ऊपर न्यौछावर हो चुकी हूँ, दूसरे की न कहलाऊँगी। ऐसी नौबत आने के पहले ही शरीर छोड़ उनसे जा मिलूँगी। कोई ताकत ऐसी नहीं जो मुझे ऐसा करने से रोक सके। हे ईश्वर! क्या तु उन आफत के परकाले ऐयारों को यहाँ का रास्ता न बतायेगा जो कुमार के लिए जान तक दे देने को मुस्तैद रहते हैं?

एक रात वह इसी सोच-विचार में पड़ी थी कि सवेरा हो गया और कमरे के बाहर से एक ऐसी आवाज उसके कानों में आई कि वह चौंक पडी। उसके फैले हुए खयाल इकट्ठे हो गये, साथ ही कुछ-कुछ खशी उसके चेहरे पर झलकने लगी। वह आवाज यह थी-

"यह काम बेशक वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों का है।"

किशोरी उठ खड़ी हुई और कमरे के बाहर निकलने पर घण्टे-भर ही में उसे मालूम हो गया कि कुंअर कल्याणसिंह को वीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग ले भागे।

अब किशोरी को अपने छटने की कुछ-कुछ उम्मीद हई और वह दिन भर इसा खयाल में डूबी रहने लगी कि देखें, इसके आगे क्या होता है।

7

आधी रात से ज्यादा जा चुकी है। किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है। हाँ, उसकी डबडबाई हुई आँखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वन्द्व मचा हुआ है। उसकी आँखों में नींद बिल्कुल नहीं है, वह घड़ी-घड़ी करवटें बदलती और लम्बी साँसें लेकर रह जाती है।

यकायक कमरे के बाहर से कोई तड़पा देने वाली आवाज उसके कान में आई जिसके सुनते ही वह बेचैन हो गई, किसी तरह लेटी रह न सकी। पलंग से नीचे उतर पड़ी और दरवाजा खोल बाहर इधर-उधर देखने लगी। वह आवाज किसी के सिसक-सिसक कर रोने की थी।

कमरे के बाहर आठ दर का दालान था जहाँ एक खम्भे के सहारे खड़ी बिलखबिलख कर रोती हुई एक कमसिन औरत को किशोरी ने देखा। खम्भे और उस औरत पर चाँदनी अच्छी तरह पड़ रही थी। पास जाने से मालूम हुसा कि सर्दी से वह औरत काँप रही है, क्योंकि कोई भारी कपड़ा उसके बदन पर न था, जिससे सर्दी का बचाव होता।

किशोरी का दिल तो पहले ही से जख्मी हो रहा था। वह इस तरह से बिलखबिलख कर किसी को रोते कब देख सकती थी! जाते ही उस औरत का हाथ थाम लिया और पूछा-

"तुम पर क्या आफत आई है जो इस तरह बिलख-बिलख कर रो रही हो?"