पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१५६

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किले में दाखिल हुए। यह बहुत बड़ा किला पहाड़ पर निहायत खूबी का बना हुआ था और इसी के अन्दर शहर भी बसा था जो बड़े-बड़े सौदागरों, महाजनों, व्यापारियों और जौहरियों के कारबार से अपनी चमक-दमक दिखा रहा था। इस शहर की खूबी और सजावट का हाल इस जगह लिखने की कोई जरूरत नहीं मालूम होती और इतना समय भी नहीं है, हाँ, मौके पर दो-चार दफे पढ़कर इसकी खूबी का हाल पाठक मालूम कर लेंगे। इस किले के अन्दर एक छोटा किला और भी था। जिसमें महाराजा और उनके आपस वाले रहा करते थे और लोगों में वह महल के नाम से मशहूर था।

इस पहाड़ पर छोटे झरने और तालाब बहुत हैं। ऊपर जाने के लिए केवल एक ही राह है और वह भी बहुत बारीक। उसके चारों तरफ घना जंगल इस ढंग का है कि जरा भी आदमी चूका और राह भूल कर कई दिन तक भटकने की नौबत आई। दुश्मनों का और किसी तरह से इस पहाड़ पर चढ़ना बहुत ही मुश्किल है और वह बारीक राह भी इस लायक नहीं कि पांच-सात आदमी से ज्यादा एक साथ चढ़ सकें। भेष बदले हुए हमारे दोनों ऐयार रोहतासगढ़ पहुँचे और वहाँ की रंगत देख कर समझ गये कि इस किले को फतह करने में बहुत मुश्किल पड़ेगी।

भैरोंसिंह और पण्डित बद्रीनाथ मथुरिया चौबे बने हुए रोहतासगढ़ में घूमने और एक-एक चीज को अच्छी तरह देखने लगे। दोपहर के समय एक शिवालय पर पहुँचे जो बहुत ही खूबसूरत और बड़ा बना हुआ था, सभामंडप इतना बड़ा था कि सौडेढ़-सौ आदमी अच्छी तरह उसमें बैठ सकते थे। उसके चारों तरफ खुलासा सहन था जिस पर कई ब्राह्मण और पुजारी बैठे धूप सेंक रहे थे। उन्हीं लोगों के पास जाकर हमारे दोनों ऐयार खड़े हो गये और गरज कर बोले-"जय जमुना मैया की!"

पुजारियों ने हमारे दोनों चौवों को खातिरदारी से बैठाया और बातचीत करने लगे।

एक पुजारी-कहिए चौबे जी, कब आना हुआ?

बद्रीनाथ-बस अभी चले ही तो आते हैं महाराज! पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते थक गये, गला सूख गया, कृपा कर सिल-लुढ़िया दो तो भंग छने और चित्त ठिकाने हो।

पुजारी-लीजिए, सिल-लुढ़िया लीजिए, मसाला लीजिए, चीनी लीजिए, खूब भंग छानिए।

भैरोंसिंह-भंग-मसाला तो हमारे साथ ही है, आप ब्राह्मणों का क्यों नुकसान करें।

पुजारी-नहीं-नहीं, हमारा कुछ नहीं है, यहाँ सब चीजें महाराज के हुक्म से मौजूद रहती हैं, ब्राह्मण परदेशी जो कोई आवे सभी को देने का हुक्म है।

बद्रीनाथ-वाह-वाह, तब क्या बात है! लाइये फिर महाराज की जयजयकार मनावें!

पुजारी ने इन दोनों को सब सामान दिया और इन दोनों ने भंग बनाई, आप भी पी और पुजारियों को भी पिलाई। दोनों ऐयारों ने बातचीत और मसखरेपन से वहाँ के पुजारियों को अपने बस में कर लिया बड़े पुजारी बहुत प्रसन्न हुए और बोले,

च॰स॰-1-9