ही तरद्दुद में पड़ गये।
इन लोगों की बातचीत हो ही रही थी कि एक चोबदार ने आकर अर्ज किया कि 'अखण्डनाथ बाबाजी बाहर खड़े हैं और यहाँ आना चाहते है।' अखण्डनाथ नाम सुन ये लोग सोचने लगे कि कौन हैं और कहाँ से आये हैं। आखिर इन्द्रजीतसिंह ने उन्हें अपने पास बुलाया और सुरत देखते ही पहचान लिया।
पाठक, ये अखण्डनाथ बाबाजी वही हैं, जो रामशिला के सामने फलगू के बीच भयानक टीले पर रहते थे, जिनके पास माधवी जाती थी, तथा जिन्होंने उस समय किशोरी की जान बचाई थी, जब खँडहर में उसकी छाती पर सवार हो भीमसेन खंजर उसके कलेजे में भोंका ही चाहता था, और जिनका हाल ऊपर के तीसरे बयान में हम लिख आये हैं। इन बाबाजी को तारासिंह भी पहचानते थे, क्योंकि कल रात को यह भी इन्द्रजीतसिंह के साथ ही थे।
इन्द्रजीतसिंह ने उठ कर बाबाजी को प्रणाम किया। इनको उठते देख और सब लोग भी उठ खड़े हुए। कुमार ने अपने पास बाबाजी को बैठाया और ऐयारों की तरफ देख के कहा, "इन्हीं का हाल मैं कह चुका हुँ, इन्होंने ही उस खँडहर में किशोरी की जान बचाई थी।"
बाबा––जान बचाने वाला तो ईश्वर है, मैं क्या कर सकता हूँ। खैर, यह तो कहिये, उस मामले के बाद की भी आपको खबर है कि क्या हुआ?
इन्द्रजीतसिंह––कुछ भी नहीं, हम लोग इस समय इसी सोच-विचार में पड़े हैं।
बाबा––अच्छा तो फिर मुझसे सुनिये। दो औरतें और जो उस मकान में थीं, उनका हाल तो मुझे मालूम नहीं कि किशोरी की खोज में कहाँ गईं, मगर किशोरी का हाल मैं खूब जानता हूँ।
बाबाजी की बातों ने सभी का दिल अपनी तरफ खींच लिया और सब लोग एकाग्र होकर उनकी बातें सुनने लगे। बाबाजी ने यों कहना शुरू किया––
"नाहरसिंह से जब कुमार लड़ रहे थे, उस समय भीमसेन के साथियों को, जो उसी जगह छिपे हुए थे मौका मिला और वे लोग किशोरी को लेकर शिवदत्तगढ़ की तरफ भागे, मगर ले न जा सके, क्योंकि रास्ते ही में रोहतासगढ़[१] के राजा के ऐयार लोग छिपे हुए थे जिन लोगों ने लड़कर किशोरी को छीन लिया और रोहतासगढ़ को ले गये। किशोरी की खूबसूरती का हाल सुनकर रोहतासगढ़ के राजा ने इरादा कर लिया था कि अपने लड़के के साथ उसे व्याहेगा और बहुत दिन से उसके ऐयार लोग किशोरी की धुन में लगे हुए भी थे। अब मौका पाकर वे लोग अपना काम कर गये। अगर आप लोग जल्द उसके छुड़ाने की फिक्र न करेंगे तो वेचारी के बचने की उम्मीद जाती रहेगी।
- ↑ रोहतासगढ़ बिहार के इलाके में मसहूर मुकाम है। यह पहाड़ के ऊपर एक किला है।उस जमाने में इस किले की लम्बाई-चौड़ाई लगभग दस कोस की होगी। बड़े-बड़े राजा लोग भी इसको फतह करने का हौसला नहीं कर सकते थे। आज कल यह इमारत बिल्कुल टूट-फूट गई है तो भी देखने योग्य है।