पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१४

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सुरेन्द्रसिंह अपने लड़के को आँखों के सामने से हटाना नहीं चाहते थे, लाचार होकर नौगढ़ की गद्दी फतहसिंह के सुपुर्द कर वे भी चुनार ही में रहने लगे, मगर राज्य का काम बिल्कुल वीरेन्द्रसिंह के जिम्मे था, हाँ, कभी-कभी राय दे देते थे। तेजसिंह के साथ जीतसिंह भी बड़ी आजादी के साथ चुनार में रहने लगे। महाराज सुरेन्द्रसिंह और जीतसिंह में बहुत मुहब्बत थी और वह मुहब्बत दिन-दिन बढ़ती गई। असल में जीतसिंह इसी लायक थे कि उनकी जितनी भी कदर की जाती थोड़ी थी। शादी के दो बरस बाद चन्द्रकान्ता को लड़का पैदा हुआ। उसी साल चपला और चम्पा को भी लड़का पैदा हुआ। इसके तीन बरस बाद चन्द्रकान्ता ने दूसरे लड़के का मुख देखा। चन्द्रकान्ता के बड़े लड़के का नाम इन्द्रजीतसिंह, छोटे का नाम आनन्दसिंह तथा चपला के लड़के का नाम भैरोंसिंह और चम्पा के लड़के का नाम तारासिंह रखा गया।

जब ये चारों लड़के कुछ बड़े और बातचीत करने लायक हुए तब इनके लिखने-पढ़ने और तालीम का इन्तजाम किया गया और राजा सुरेन्द्रसिंह ने इन चारों लड़कों को जीतसिंह की शागिर्दी और हिफाजत में छोड़ दिया।

भैरोंसिंह और तारासिंह ऐयारी के फन में बड़े तेज और चालाक निकले। इनकी ऐयारी का इम्तिहान बराबर लिया जाता था। जीतसिंह का हुक्म था कि भैरोंसिंह और तारासिंह सारे ऐयारों को, बल्कि अपने बाप तक को, धोखा देने की कोशिश करें और इसी तरह पन्नालाल वगैरह ऐयार भी उन दोनों लड़कों को भुलावा दिया करें। धीरे-धीरे ये दोनों लड़के इतने तेज और चालाक हो गए कि पन्नालाल वगैरह की ऐयारी इनके सामने दब गई।

भैरोंसिंह और तारासिंह इन दोनों में ज्यादा चालाक कौन था, इसके कहने की कोई जरूरत नहीं, आगे मौका पड़ने पर आप ही मालूम हो जाएगा, हाँ इतना कह देना जरूरी है कि भैरोंसिंह को इन्द्रजीतसिंह के साथ और तारासिंह को आनन्दसिंह के साथ ज्यादा मुहब्बत थी।

चारों लड़के होशियार हुए अर्थात् इन्द्रजीतसिंह, भैरोंसिंह और तारासिंह की उम्र अट्ठारह वर्ष की और आनन्दसिंह की उम्र पन्द्रह वर्ष की हुई। इतने दिनों तक चुनार राज्य में बराबर शान्ति रही, बल्कि पिछली तकलीफें और महाराज शिवदत्त की शैतानी एक स्वप्न की तरह सभी के दिल में रह गई।

इन्द्रजीतसिंह को शिकार का बहुत शौक था। जहाँ तक बन पड़ता, वे रोज शिकार खेला करते। एक दिन किसी बनरखे ने हाजिर होकर बयान किया कि इन दिनों फलाँ जंगल की शोभा खूब बढ़ी-चढ़ी है और शिकार के जानवर भी इतने आये हुए हैं कि अगर वहाँ महीना-भर टिक कर शिकार खेला जाय, तो भी न घटे और कोई दिन खाली न जाय। यह सुनकर दोनों भाई बहुत खुश हुए। अपने बाप राजा वीरेन्द्रसिंह से शिकार खेलने की इजाजत मांगी और कहा कि "हम लोगों का इरादा आठ दिन तक जंगल में रह कर शिकार खेलने का है।" इसके जवाब में राजा वीरेन्द्रसिंह ने कहा कि "इतने दिनों तक जंगल में रह कर शिकार खेलने का हुक्म मैं नहीं दे सकता-अपने दादा से पूछो, अगर वे हुक्म दें तो कोई हर्ज नहीं।"