पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१३५

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किन्नरी दरवाजा खोलना तो भूल गई, और किशोरी को न पाने से घबरा कर इधर-उधर ढूँढ़ने लगी। उस भयानक अँधेरे में दालान और कोठरियों में घूमती हुई किन्नरी को इस बात का जरा भी खौफ न मालूम हुआ कि किशोरी की तरह कहीं मुझ पर आफत न आ जाय।

बेचारी किशोरी चीख मार कर बेहोश हो गई मगर जब वह होश में आई तो उसने अपने को मौत के पंजे में गिरफ्तार पाया। उसने देखा कि झाड़ियों के बीच में जबर्दस्ती वह जमीन पर गिराई हुई है, एक आदमी नकाब से अपनी सूरत छिपाये उसकी छाती पर सवार है और खंजर उसके कलेजे के पार करना ही चाहता है।