तक ज्यों का त्यों बन्द था। यह कब हो सकता है कि कोई ताला खोलकर इस अलमारी के अन्दर घुस गया हो और बाहर का ताला जैसा का तैसा दुरुस्त कर दिया हो! लेकिन तब फिर क्या हुआ? यह औरत क्योंकर आयी और किस राह से चली गयी? उन लोगों ने लाख सिर धुना और गौर किया, मगर कुछ समझ में न आया।
ताज्जुब भरी बातों ही में रात बीत गयी। सुबह को जब राजा वीरेन्द्रसिंह अपने लड़के को देखने के लिए उस कमरे में आए तो जहि वैद्य तथा और मुसाहिब लोग भी उनके साथ थे। वीरेन्द्रसिंह ने इन्द्रजीतसिंह से तबीयत का हाल पूछा। उन्होंने कहा, "अब तबीयत अच्छी है मगर एक जरूरी बात अर्ज करना चाहता हूँ जिसके लिए तख लिया (एकान्त) हो जाना बेहतर होगा।"
वीरेन्द्रसिंह ने भैरोंसिंह की तरफ देखा। उसने तखलिया हो जाने में महाराज की रजामन्दी जानकर सभी को हट जाने का इशारा किया। बात की बात में सन्नाटा हो गया और सिर्फ वही पाँच आदमी उस कमरे में रह गए।
वीरेन्द्रसिंह––कहो, क्या बात है?
इन्द्रजीतसिंह––आज रात एक अजीब बात देखने में आयो।
वीरेन्द्रसिंह––वह क्या है?
इन्द्रजीतसिंह––(तारासिंह की तरफ देखकर) तारासिंह, तुम्हीं सब हाल कह जाओ क्योंकि उस समय तुम्ही जागते थे, हम लोग तो पीछे जगाए गए हैं।
तारासिंह––बहुत खूब।
तारासिंह ने रात का पूरा-पूरा हाल राजा वीरेन्द्रसिंह से कह सुनाया जिसे सुनकर उन्होंने बहुत ताज्जुब किया और घण्टों तक गौर में डूबे रहने के बाद बोले, "खैर, यह बात किसी और को न मालूम हो, नहीं तो मुसाहिबों और अहलकारों में खलबली पैदा हो जायेगी और सैकड़ों तरह की गप्पें उड़ने लगेंगी। देखो तो क्या होता है और कब तक पता नहीं लगता, आज हम भी इसी कमरे में सोयेंगे।"
एक दिन क्या, कई दिनों तक राजा वीरेन्द्रसिंह उस कमरे में सोए मगर कुछ मालूम न हुआ और न फिर कोई बात ही देखने में आयी, आखिर उन्होंने हुक्म दिया कि उस कोठरी का दरवाजा नया कुलाबा लगाकर फिर उसी तरह बन्द कर दिया जाय।
12
आज पाँच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेन्द्र सिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोंसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इन्द्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्छी है और वे चलने फिरने लायक हो गये हैं। देवीसिंह को बहुत जल्द लौट आते देखकर सभी को विश्वास हो गया कि जिस काम पर मुस्तैद किए गये थे उसे कर चुके, मगर ताज्जुब इस बात का था कि वे अकेले क्यों आये।