लिए मुकर्रर कर दिये हैं कि अगर कोई आदमी अग्निदत्त के खिलाफ नजर आवे तो बेधड़क उसका सिर चोरी से रात के समय काट डालें, या दीवान साहब को जब रुपये की जरूरत हो, तो जिस अमीर या जमींदार के घर में चाहे डाका डाल दें या चोरी करके कंगाल बना दें। क्योंकि इसकी फरियाद कहीं सुनी नहीं जाती, इस वजह से और भी बाहरी चोरों को अपना घर भरने और हम लोगों को सताने का मौका मिलता है। हम लोगों ने अभी उन दुष्टों की सूरत तो नहीं देखी और यह भी नहीं जानते कि वे लोग कौन हैं या कहाँ रहते हैं जिनके खौफ से दिन-रात हम लोग काँपा करते हैं।"
इस अर्जी के नीचे कई मशहूर और नामी रईसों और जमींदारों के दस्तखत थे। यह अर्जी उसी समय देवीसिंह के हवाले कर दी गयी और देवीसिंह ने वादा किया कि एक महीने के अन्दर इन दुष्टों को जिन्दा या मरे हुए हुजूर में हाजिर करूँगा।
इसके बाद जर्राहों ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह के जख्मों को खोला और दूसरी पट्टी बदली, कविराज ने दवा खिलाई और हुक्म पाकर सब अपने-अपने ठिकाने चले गये। देवीसिंह उसी समय बिदा हो न मालूम कहाँ चले गये और राजा वीरेन्द्रसिंह भी वहाँ से हटकर अपने कमरे में चले गए।
इस कमरे के दोनों तरफ छोटी-छोटी दो कोठरियाँ थीं। एक में संध्या-पूजा का सामान दुरुस्त था और दूसरी में खाली फर्श पर एक मसहरी विछी हुए थी जो उस मसहरी से कुछ छोटी थी जिस पर कुँअर इन्द्रजीतसिंह आराम कर रहे थे। कोठरी से वह मसहरी बाहर निकाली गई और कुँअर आनन्दसिंह के सोने के लिए कुँअर इन्द्रजीतसिंह की मसहरी के पास बिछाई गयी। भैरोंसिंह और तारासिंह ने भी दो मसहरियों के नीचे अपना बिस्तर जमाया। सिवाय इन चारों के उस कमरे में और कोई न रहा। इन लोगों ने रात भर आराम से काटी और सवेरा होने पर आँख खुलते ही विचित्र तमाशा देखा।
सुबह के पहले ही दोनों ऐयारों की आँखें खुलीं और हैरत-भरी निगारों से चारों तरफ देखने लगे, इसके बाद कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह भी जागे और फूलों की खुशबू, जो इस कमरे में बहुत देर पहले से ही भर रही थी, लेने तथा दोनों ऐयारों की तरह ताज्जुब से चारों तरफ देखने लगे।
आनन्दसिंह––खुशबूदार फूलों के गजरे और गुलदस्ते इस कमरे में किसने सजाये हैं?
इन्द्रजीतसिंह––ताज्जुब है, हमारे आदमी बिना हुक्म पाये ऐसा कब कर सकते हैं?
भैरोंसिंह––हम दोनों आदमी घण्टे भर के पहले से उठकर इस पर गौर कर रहे हैं, मगर कुछ समझ नहीं आता कि क्या मामला है।
आनन्दसिंह––गुलदस्ते भी बहुत खूबसूरत और बेशकीमत मालूम पड़ते हैं।
तारासिंह––(एक गुलदस्ता उठाकर और पास लाकर) देखिए, इस सोने के गुलदस्ते पर क्या उम्दा मीने का काम किया हुआ है! बेशक किसी बहुत बड़े शौकीन का बनवाया हुआ है, इसी ढंग के सब गुलदस्ते हैं।