पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१११

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
103
 

रही मगर कुछ कम जरूर हो गई। इतने में दिल बहलाने का कुछ ठिकाना समझ कर देवीसिंह पुनः बोल उठे।

देवीसिंह––अर्जियों वाला सन्दूक हाजिर है, उसके देखने का समय भी हो गया है। ‌

इन्द्रजीत––कैसा सन्दूक?

आनन्दसिंह––यहाँ महल के फाटक पर दो सन्दूक इसलिए रख दिए गए हैं कि जो लोग दरबार में हाजिर होकर अपना दुख-सुख न कह सकें, वे लोग अरजी लिख कर इस सन्दूक में डाल दिया करें।

इन्द्रजीतसिंह––बहुत मुनासिब है, इससे रैयतों के दिल का हाल अच्छी तरह मालूम हो सकता है। इस तरह के कई सन्दूक शहर में इधर-उधर भी रखवा देने चाहिए क्योंकि बहुत से आदमी खौफ से फाटक तक आते भी हिचकेंगे।

आनन्दसिंह––बहुत खूब, कल इसका इन्तजाम हो जायगा।

वीरेन्द्रसिंह––हमने यहाँ की गद्दी पर आनन्दसिंह को बैठा दिया है।

इन्द्रजीतसिंह––बड़ी खुशी की बात है, यहाँ का इन्तजाम ये बहुत ही अच्छी तरह कर सकेंगे क्योंकि यह तीर्थ का मुकाम है और इनका पुराणों से बड़ा प्रेम है और उन्हें अच्छी तरह समझते भी हैं। (देवीसिंह की तरफ देख कर) हाँ साहब, वह सन्दूक मँगवाइये जरा दिल तो बहले।

हाथ भर का चौखूँटा सन्दुक हाजिर किया गया और उसे खोलकर उसमें भरी अर्जियाँ जिनसे वह सन्दूक भरा था बाहर निकाली गई। पढ़ने से मालूम हुआ कि यहाँ की रिआया नये राजा की अमलदारी से बहुत प्रसन्न है और मुबारकबाद दे रही है, हाँ, एक अर्जी उसमें ऐसी भी निकली जिसके पढ़ने से सभी को तरद्दुद ने आ घेरा और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। पाठकों की दिलचस्पी के लिए हम उस अर्जी की नकल नीचे लिखे देते हैं––

"हम लोग मुद्दत से मनाते थे कि यहाँ की गद्दी पर हुजूर को या हुजूर के खानदान में से किसी को बैठा देखें। ईश्वर ने आज हम लोगों की आरजू पूरी की और कम्बख्त माधवी और अग्निदत्त का बुरा साया हम लोगों के सिर से हटाया। चाहे उन दोनों दुष्टों का खौफ अभी हम लोगों को बना हो, मगर फिर भी हुजूर के भरोसे पर हम लोग बिना मुबारकबाद दिए और खुशी मनाये नहीं रह सकते। वह डर इस बात का नहीं है कि यहाँ फिर उन दुष्टों की अमलदारी होगी तो कष्ट भोगना पड़ेगा। राम-राम, ऐसा तो कभी तो ही नहीं सकता, हम लोगों को यह गुमान तो स्वप्न में भी नहीं हो सकता, वह डर बिल्कुल दूसरा ही है जो हम लोग नीचे अर्ज करते हैं। आशा है कि बहुत जल्द उससे हम लोगों की रिहाई होगी, नहीं तो महीने भर में यहाँ की चौथाई रिआया यमलोक में पहुँच जायेगी। मगर नहीं, हुजूर के नामी और अपनी आप नजीर रखने वाले ऐयारों के हाथ से वे बेईमान हरामजादे कब तक बच सकते हैं जिनके डर से हम लोगों को पूरी नींद सोना नसीब नहीं होता।

"कुछ दिनों से दीवान अग्निदत्त की तरफ से थोड़े बदमाश लोग इस काम के