इस खुशनुमा और आलीशान मकान के चारों तरफ एक बाग था जिसके चारों तरफ चहारदीवारियाँ बनी हुई थीं। बाग के पूरब तरफ एक बहुत बड़ा फाटक था, जहाँ बारी-बारी से बीस आदमी नंगी तलवार लिए घूम-घूम कर पहरा देते थे। चपला और कमला कमन्द के सहारे बाग की पिछली दीवार लाँघ कर यहाँ पहुँची थीं और इस समय भी ये चारों उसी तरह निकल जाना चाहते थे।
हम यह कहना भूल गये कि बाग के चारों कोनों में चार गुमटियाँ बनी हुई थीं, जिनमें सौ सिपाहियों का डेरा था और आजकल तिलोत्तमा के हुक्म से वे सभी हरदम तैयार रहते थे। तिलोत्तमा ने उन लोगों को यह भी कह रखा था कि जिस समय मैं अपने बनाये हुए बम के गोले को जमीन पर पटकू और उसकी भारी आवाज तुम लोग सुनो, फौरन हाथ में नंगी तलवारें लिए वाग के चारों तरफ फैल जाओ, जिस आदमी को आते-जाते देखो, तुरन्त गिरफ्तार कर लो।
चारों आदमी सुरंग का दरवाजा खुला छोड़ नीचे उतरे, और कमरे के बाहर हो बाग के पिछली दीवार की तरफ जैसे ही चले कि तिलोत्तमा पर नजर पड़ी। चपला यह खयाल करके कि अब बहुत ही बुरा हुआ, तिलोतमा की तरफ लपकी और उसे पकड़ना चाहा, मगर वह शैतान लोमड़ी की तरह चक्कर मार निकल ही गई और एक किनारे पहुँच मसाले से भरा हुआ गेंद जमीन पर पटककर, जिसकी भारी आवाज चारों तरफ गूँज गई और उसके कहे मुताबिक सिपाहियों ने होशियार होकर बाग को चारों तरफ से घेर लिया।
तिलोत्तमा के भाग कर निकल जाते ही चारों आदमी, जिनके आगे-आगे हाथ में नंगी तलवार लिए इन्द्रजीतसिंह थे, बाग की पिछली दीवार की तरफ न जाकर सदर फाटक की तरफ लपके, मगर वहाँ पहुँचते ही पहरे वाले सिपाहियों से रोके गये और मार-काट शुरू हो गई। इन्द्रजीतसिंह ने तलवार तथा चपला और कमला ने खंजर चलाने में अच्छी बहादुरी दिखाई।
हमारे ऐयार लोग भी वाग के बाहर चारों तरफ लुके-छिपे खड़े थे, तिलोत्तमा के चलाये हुए गोले की आवाज सुनकर और किसी भारी फसाद होने का खयाल कर फाटक पर आ जुटे और खंजर निकाल माधवी के सिपाहियों पर टूट पड़े। बात की बात में माधवी के बहुत से सिपाहियों की लाशें जमीन पर दिखाई देने लगी, और बहुत बहादुरी के साथ लड़ते-भिड़ते हमारे बहादुर लोग किशोरी को लिए निकल ही गए।
ऐयार लोग तो दौड़ने-भागने में तेज होते ही हैं, इन लोगों का भाग जाना कोई आश्चर्य न था, मगर गोद में किशोरी को उठाये इन्द्रजीतसिंह उन लोगों के बराबर में कब दौड़ सकते थे और ऐयार लोग भी ऐसी अवस्था में उनका साथ कैसे छोड़ सकते थे। लाचार जैसे बना, उन दोनों को भी साथ लिए हुए मैदान का रास्ता लिया। इस समय पूरब की तरफ सूर्य की लालिमा अच्छी तरह फैल चुकी थी।
माधवी के दीवान अग्निदत्त का मकान इस बाग से बहुत दूर न था, और वह बड़े सवेरे उठा करता था। तिलोत्तमा के चलाये हुए गोले की आवाज उसके कानों में पहुँच ही चुकी थी, बाग के दरवाजे पर लड़ाई होने की खबर भी उसे उसी समय मिल