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पाठान्तर-2-आवा । २-मुहावा । टिप्पणी-लैण्टम प्रतिका यह पृ पटा है जिसके कारण अंतिम तीन यमोंगी पूर्व अर्धालियाँ तथा पत्ताका अधिकारा नए हो गया है। पनाय प्रतिका उपलब्ध पोटो मी अत्यन्त अस्पष्ट है, जिसके कारण घत्ताके नए अशोका गमुचित उद्धार सम्भर न हो सका। (१) सफरि-मली। सुभर पाठ भी सम्भव है--सुभर सरोवर हशा लि क्राहिं (पदमावत)। (२) अवगाह (स.-अगाध, वफारके प्रश्लेपसे अवगाह)-गम्भीर, अथाह | चूर--ममात हो गया। २२ (रीलैण्ड्स ४) सिस्ने जानावरों दर औं हौज गोयद (सरोवरके जन्तुओंका वर्णन) पैरहिं हंस मॉछ बहिराहैं । चकवा चकवी केरि कराह ॥१ दवला टेक बैठ झरपाये । बगुला वगुली सहरी खाये ॥२ बनले ३ सुवन घना जल छाये । अरु जलकुकुरी पर छाये ॥३ पसरी पुरई तूल मतूला । हरियर पात तइ रात फूला ॥४ पॉखी आइ देस कर परा । कार कॅरजवा जलहर भरा ॥५ सारस कुरलहिं रात, नींद तिल एक न आवइ १६ सबद सुहाच कान पर, जागहिं रैन बिहावइ ||७ टिप्पणी--(३) बैंक-आँजन यगुला । सहरी-गपुरी, मछली। (४) पसरी-(स०प्रसार) पैली। पुरई-पुरइन (सं० पुटफिनी), कमल. की वेल । हरियर-हरी । पात-पत्ती। रात-(स० रक्त) लल । (५) पाँग्बी-पसी। देस कर (मुहावरा) नाना प्रकारके। कार- काला। करजवा-परज, पक्षी विशेष । (६) कुरलहि-नहाते हैं। २४ (रीसैण्ड्य ५) जित खंदक यर गिर्दै शहर गोवर गोयद (गोयर नगरसी साँईका पर्गन) जाइ देस गोचर [*] साई । पुरिस पचास केर गहराई ॥१