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Y समझाना; ४८-चाँद का उत्तर; ४९-सासका ब्रोध; ५०-सहदेव को सूचना ५१-चौदका मैके औटना, ५२-सहेलियोंसे भेंट | व्यथा-वर्णन- ५३०४-माघ मास, ५५-पागुन मास, ५६-चैत मास । (यह अश बारहमासारे रूपमे है। अतः उसमें कमसे कम १२ वडवक रहे होंगे। किन्तु तीन ही मास सम्बन्धी पडदक उपलब्ध हैं। उपलब्ध कडधक भी अधूरे है, जे पंजाय प्रतिसे प्राप्त हुए हैं।) याजिर का चाँद-दर्शन- ६६-बाजिरका चाँदयो देसकर मूर्षित होना, ६७-जनतारा बाजिरसे मृर्गका पारण पृछना, ६८ ६९-याजिरका उत्तर, ७०-याजिरका नगर छोड पर जाना; ७१-दूसरे नगर में पहुँचकर पाजिरका गगना; ७२-राजा रूपचन्दका बाहिरको बुलाना; ७३-पाजिरका चाँद दर्शनको यात कहना, ७४-चाँदवे प्रति रागको जिज्ञासा। चाँदकी रूप-चर्चा- ७५-माँग; ७६-पेश, ७७-ललाट; ७८-भोह, ७९-नेन, ८०-मासिका ८१- अधर; ८२-दाँत, ८३-रसना, ८४-वर्ण, ८५-तिल, ८६-ग्रीवा, ८७-भुजाएँ; ८८-कुच, ८९-पेट, ९०-पीठ, ९१-जानु, ९२-पग और गति, ९३-आचार; ९४-वस्त्र, १५-आभूषण रूपचन्दफा सहदेव पर आक्रमण- ९६-९७-१चकी तैयारी; ९८-रूपचन्दरे अश्व; ९९-उसके हाथीः १००-सेना- की बूच, १०१-मार्गमें अपशकुन, १०२-गोवर नगर पर घेरा; १०३-नगरमें आतक; १०४-सहदेवका रूपचन्द पे पास दूत भेजना; १०५-दूर्वोको रूपचन्दका उत्तरः १०६-दृतीया समझाना; १०७-दूतो पर रूपचन्दका नोध, १०८-दूतोको जानेका आदेश, १०९-रूपचन्दका चाँदकी माँग करना; ११०-दूतोका गैटना; २२१-सहदेवका अपने सेनानायकोसे परामर्श, ११२-सहदेवरे अश्व, ११३- उसके अश्वारोही, ११४-धनुर्धर; ११५-रय, ११६-हस्ति । रूपचन्द-सहदेव युद्ध- ११७-सेनाओंका युद्धक्षेत्रमें आना; ११८-वरू बाँटाया युद्ध; ११९-रूपचन्द- पी सेनामें विजयोल्लास, १२०-लोरफये पास भाटका गना; १२१-लेरकया युद्ध लिये तैयार होना; १२३-मैनाका लरक्को युद्धमे जानेमे रोरना, १२४- लोरपया अजयीये घर जाना; १२५-अजयोका युद्ध-कौशल रताना; १२६- गोरक्या महरके पास पहुँचना, १२७-लोरमका युद्ध के मैदानमें गना; १२८- गैरवली सेना; १२९-उसे देखकर रूपचन्दया भयभीत होना और दूत भेजना;