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६. अगहन रैन बाद दिन खीना 1 ४६६।। अगहन देवस घय निसि वाड़ी। आगे परे नीर खीर पावद । अगलहि काहि पानि सर बाटा। पाछे रह मो पर पाबद॥ १.५ पछिलेहि काहि न कॉदहु भाटा ॥ ११० फूले कास दस सिर छाये। सरवर संवरि हंस चलि आये। मारस कुरल हिं खिटरिज भाये । ४४४२ सारस कुरुहि राजन देखापे ॥ ३४॥ यही नहीं, अनेक स्थानों पर तो पदमावतमे अविकल रूपमे चन्दायनकी हो शब्दावली देसनेमे आती है । अकस्मात् सामने आये ऐसे तीन चार उदाहरण हम यहाँ दे रहे है। चन्दायन पदमावत चावा चकमी केरि कराहैं । २२।। चकई चकया केलि कराही । ३३१५ चाँद धौरहर ऊपर गयी । ११५॥ पदुमति धीराहर चढ़ी । २७८॥ पंदित वैद सथान बुलाये । १६ ओझा मैद सयान योलाये । १२०१२ तिलक हुआईस मम्नक कादा । २०१२ तिलक दुआदस मानक दीन्हे । ५०५३ ध्यानमे देखनेपर इस तरहकी पत्तियाँ बढी मात्रामे पायी जा सकती हैं। इन सबको मात्र आकस्मिक, सस्कारजन्य अथवा किसी अविच्छिन्न विचार परम्पराका परिणाम कहना, किसी के लिए भी कठिन ही नहीं असम्भव होगा।