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चन्दायनसे सरमे अधिक प्रभावित पदमानत है । पदमारतकी कथाका उत्तरार्ध, जिसे रामचन्द्रशुक्ल एव कुछ विद्वान् ऐतिहासिक समझते रहे हैं, वस्तुत चन्दायनकी कथाका ही पूवार्ध है, नामाको बदल कर जायसीने उसे अविरल रूपसे आत्मसात कर लिया है। चन्दायनमें चाँदयो झरोसेपर सडी देसवर घाजिर मूर्षित होता है और वह जावर रूपचन्दने उसरे रूप सैदयकी प्रशसा करता है। उसे सुनकर रूपचन्द गोवरपर आक्रमण करता है। ठीक यही क्या पदमावतको भी है। इसमें बाजिर, चौद और रूपचन्दवे स्थानपर प्रमश राघव चेतन, पद्मावती और अलाउद्दीनमा नाम दिया गया है । जिस ढगसे दाऊदने चाँदका रूप वर्णन किया है ठीक उसी ढगसे जायसीने पद्मावतीका किया है। आगे जिस प्रकार सहदेव महर, भोजका आयोजन करते है और उसका जिस विस्तारवे साथ दाऊदने वणन किया है, ठीक उसी प्रकार हम रतनसेनको भी पदमावतम भोजका आयोजन करते पाते हैं और उसी विस्तारपे साथ जायसीने उसका वर्णन किया है। चाँदके रूप दर्शनपे बाद लोरर थीमार एनकर साटपर पड रहता है, ठीक उगी ददशामें हम पदमावती पदमावती रूप श्रवणये बाद रतनसेनको पाते हैं । चाँदकी प्रासिके लिए लोरक योगी यनता है उसी तरह पद्मावतीको प्रातिरे लिये रतन सेन भी योगीका रूप धारण करता है। चॉदवा लोरक्की मातिर निमित्त और पद्मावतीमा रतनसेन समागमकी प्राप्तिरे लिए देव दर्शनको जाना, एक-सी घटनाएँ हैं। चन्दायन और पदमावती कथाओंम इसी तरहकी और बहुत सो फ्यानक सम्बन्धी रामानताएँ है । ये अद्भुत समानताएँ यह सोचने और कहनेको विवश करती है वि जायसी चन्दायनसे पृर्णत परिचित थे। ये परिचित ही नहीं थे, उन्होंने अपनी पाव्य रचनाम उसका मुक्त रूपसे उपयोग भी दिया है। ___ इस धारणाको इस यातसे और भी बल मिलता है कि पदे पदे पदमावत के वर्णनाम चन्दायनके साथ अत्यधिक भाव-साम्य है। उसके कुछ नमूने इन पत्तियों देखे जा सकते हैं . चन्दायन पदमारत सिरजसि ह सीज भी धूपा । १५ कीन्देसि धूप सी और डाहाँ। 1 पुरख एक मिरजसि उजियारा। कीन्हेसि पुरुष एक निरमरा । नाउँ मुहम्मद जगत पियारा || नाउँ मुहम्मद पूनिउँ करा ॥ गउय सिंघ एक पथदिं रंगावै। गउव सिंह रंगहि एक याहि । पर घाट उर पाी पिया रा टुमट पानि पियहिएर घाटा ॥ १५.५ एक याट गयी हरदी, एर थाट गौ सिंघर, दोसर गयी महोय । १६ दोमर एप समीप ॥ 11010