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यद्याप कविने उन्हीं घटनाओंकी चर्चाकी है जिनका सीधा सम्बन्ध नायिका- नायक्के जीवनसे है, तथापि उसमें युग-जोवनको विविधता और विस्तार दोनों ही देखा जा सकता है। घटनाएँ चैयक्तिक होते हुए भी, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रोंसे सम्बन्ध बनाये हुए है। कविने जिस सूक्ष्मताके साथ पारिवारिक जीवन-जन्म, विवाह, काम-वेलि, सान-पान, कल्ह विपाद, भूषण वसन, साज-सज्जाका परिचर दिया है, उसी सूक्ष्मता साथ उसने नगर, बाजार हाट, मन्दिर-देवाल्य, भरन-आवास, रीति. रिवाज, ज्योतिष शकुन, राशि-नक्षन, युद्ध, याना, जय पराजयकी भी चर्चा की है। सर्वत्र उन्होने अपनी पैनी दृष्टि और सजग वुद्धिका परिचय दिया है। कहना न होगा कि दाऊदने जीवनको अत्यन्त निकटसे देखा था और मानव मनोविज्ञानका भी सूक्ष्म अध्ययन किया था। उनका शान पोरा पुस्तकीय न था। उदाहरण के लिए चाँद और सासकी नोंक-झोंक, चाँद मैनाके वाक्युद्ध और हाथापायीका जैसा चित्रण उन्होंने किया है, यह वैसा ही दृश्य पूर्वी उत्तर प्रदेशके किमो गाँवमें आजसे तीस-पैतीस वर्ष पूर्व नित्य सरलतासे देसा जा सकता था। वस्तु वर्णनकी तरह ही दाऊद ने मानसिक दशाओंका चित्रण भी मार्मिक ढगसे किया है। प्रेम, वियोग, मातृ ममता, याना कष्ट, विपत्ति, अनुता, मित्रता, वीरता आदिके चित्र स्थान स्थान पर उभरे रूपमें सामने आते हैं। किन्तु यविके काव्य. प्रतिमाके दर्शन सबसे अधिक चाँद के रूप-सौन्दर्य और लोरको विरहकी मनोदशाओं- से चित्रण पाते है । वस्तुतः दाउदने प्रेम और विरहको ही सर्वाधिक और व्यापक रूपसे चित्रित किया है। इन चित्रणमें अनुभूतिको गहराई, सच्चाई, तीनता, सभी कुछ निहित है। कहनेका यह तात्पर्य भी नहीं है कि दाऊदने जो कुछ कहा है वह सर्वथा मौलिक है । चाँद के रूपका सागोपाग अर्थात् शिख-नख वर्णन, बारहमासाके रूपमें ऋतु-चर्चा आदि शास्त्रीय एव लोक परम्परा पर ही आश्रित हैं। उनको उपमाएँ भी परम्परागत ही अधिक है। कविका ध्यान प्रतिसरी ओर भी गया है और अपने दोनों ही बारहमासाओंमें उद्दीपनरे रूपमे उसने प्राकृतिक वस्तुओका उल्लेख किया है। गोवर नगरके वर्णनमें वृक्षों और पुप्पोंको भी चर्चा की है । पर उन्हें हम सूची मात्र ही कह सकते हैं। हाँ, अपने अपार विधानमे जहाँ उन्होंने प्रवृतिरा उपयोग किया है, वहाँ हमे उनके प्रति निरीक्षणकी सूक्ष्मताका परिचय मिलता है। यथा- मांग चोर सर सेंदुर पूरा । रेंग चला जनु कानकेनरा ॥ ०५२ रॉय केम मुर पाँध धराये। जानु सेंदुरी नाग मुहाये ॥ पार अम्य फार जनु मोतिह भरे । ते है भौंह के तर घरे ।। ७९१२ मुख क सोहाग भयेउ तिल संगू। पदम पुहप सिर पैठ भुजंगू ॥ ८५२ यरें लंक विसेसे धना । और लंग पातर कर गुना ॥ ९०१४