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है । तोरक चाँद द्वारा आष्ट किये जानेकै याद हो, उसको ओर आकृष्ट होता है। वह चाँद वियोगमें तटपता अवश्य है, पर उससे प्राप्त करनेरे निमित रूप कोई चेष्टा नहीं करता। चाँद ही अपनी दामो विरसतरे माध्यम से अपने निकट बुलनेस उपनाम करती है और उसे अपने पास चुलगती है । चाँद ही लेकको साथ लेकर भाग चल्ने प्रेरित करती है। चाँदको प्रेरणग्वे ही वह गोवर छोटकर हरदीकी ओर प्रस्थान करता है। मार्गम जर बावन उससे लडने आता है तो चाँद ही उसे उससे बचनेश उपाय बताती है। मार्गकी कठिनाइयों में भी चाँद ही प्रधानता रिए दिसापी परती है । लोरर तो उससा सहापर मात्र लगता है। कहनेका तात्परं यह है लोरक्या सारा कार्य यन्त्ररत है। उसरे कार्योरी सूत्रधार चाँद है। लोरबसे अधिक निसरा दुआ रूप मैनाग है, उसे हम सरल्ताने उप- नायिरा या सहनापिका कह सकते हैं। वो तो मैंगा भी लोरक्की तरह हो चाँदके माध्यममे काव्यमे उभार पाती है, पर उभरने के पश्चात् वह अपना स्वतन्त्र अस्तित्व लेकर कापरे उत्चराधपर छा जाती है। वहाँ भी पुरुष पात्रके रूपमें लोरकका किमो प्रसाररा निखरा रूप सामने नहीं आता। चन्दायनमें दूसरी उल्लेखनीय बात यह है कि इसरे नम्पर, नातिका और उअनाविका तीनों ही विवाहित हैं । नायिका चाँदवा विवाह पावनते हुआ है, जिसका स्थान समूचे कायमे नगप्प है। उपनायिका मैंना माँजरि नायक लोरकको पनी है । भारतीय प्रेमकथाओंमे अधिकारातः हम नायक-नापिका रूपमें अविवाहित युवक- युवतिगेको हो पाते हैं। उन प्रेमाकर्पणकी परिणति विवाहमें होती है और कथा समात हो जाती है। कुछ प्रेम-कथाएँ ऐसी अवस्य हैं जिनमें नायक विवाहित होते हुए भी क्सिी मुन्दरीरे प्रति आरट होता है और उसे पास करनेकी चेष्टा करता है। पुरुरवा- उर्वशी और दुपन्त शकुन्तलाको क्याएँ इसी दगकी हैं। पर भारतीय साहित्यमे ऐसी कोई कानों नहीं मिलती जिसमें कोई नापिका विवाहित होकर किसी पुरपरे प्रति आरट हुई हो और उसे प्राप्त करनेकी चेटाको हो । हाँ, पारसी प्रेमाख्यानों, यथा- लैला-मजनू, शीरी-फरहाद आदिकी नायिकाएं विवाहित पायी जाती है। किन्तु उनकी भी कोई नारिका रूत. किसी पुरुषकी ओर आकृष्ट नहीं होती। पुरुष ही अपनी प्रेमकी तीव्रतामे उसे अपनी ओर ससक्नेसी पेश करता है। इन दम्शेर मान देनेर क्पाका यह अनोखापन अपने आपमें उमर उठठा है। चन्दायनकी क्थाका एक अनोमान पह भी है कि नापिका चाँदको नापक लोरक्रे मिलने तक हो प्रेम-यथा सहन करना पटता है। उसरे पश्चात् जर नायक कोरफ उसने निकट आ जाता है तो उने अपनी प्रेमिका अत्यन्त निकट रहते हुए भी वियोगा दु मह दु म भोगना पाता है। उसकी प्रेमिका बार-बार मरकर अथवा मोर उसे दुखी बनाती रहती है। इस क्यामें विरहका वास्तविर भार तो उसनापिका मैंनाको सहना पटता है। वह लोरवरे विरहमें दिन रत झुरती रहती है। इस कथामें यह भी असाधारण पात देखनेको मिलती है कि सामान्य प्रेम-