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बम्बईवाली प्रतिमें चन्दायनके पृष्ठोसे अलग अत्तम थे। किसी एक जिन्दम दो अन्यों सण्डित पृष्ठोंका एक साथ होना कोई नवीन बात नहीं है। मैंना-सतकी कथा, जिसे हम परिशिष्टम दे रहे है, अपने आपमें इतनी पूर्ण और इस दगकी है कि उसे किसी प्रकार चन्दायनमे जोडा नहीं जा सकता । जिस परिस्थितिम साधनने मैना-सतमें बारहमासा दिया है, उसी परिस्थितिम चन्दायनमें पहलेसे एक बारहमासा मौजूद है ! मैंना-सतकी मैंना अपने घरम एकाकी है जिसके कारण यह दूतीयो, विश्वास कर अपने पास रस लेती है। चन्दायनकी मेनारे पास उसकी सास सोलिन मौजूद है । उसके रहते दूतीका मैनाको यहका सकना सम्भव नहीं है। मैंना-सत किसी भी प्रकार चन्दायनमे सप नहीं सकता । अन यह पहना कि मैना-सत चन्दायन प्रसग रूपम रचाया गया था, गलत है। साथ ही, इस प्रसगमें यह बात भी ध्यान देनेकी है कि मैंना-सतर प्रत्येक कडयकमे साधनके नामझी छाप है। सिसी पूर्व रचनामें समावेश करनेक लिए रची गयी सामग्रीमे कोई कवि अपना नाम नहीं देता । यह बात पदमावतो उन अशों को देखनेसे स्पष्ट हो जाती है जिहे माताप्रसाद गुप्तने प्रक्षिप्त माना है। दूसरी बात यह है कि मैंना-सतके प्रत्येक कड्या आरम्मम एक सोरठा है, जिसका चन्दायनमें सर्वथा अभाव है। यदि चन्दायनम सम्मिलित करने के लिए मैना-सतकी रचना हुई होती ता उसमें सोरठोंका कदापि प्रयोग न होता । अत साधन त मैना-सत और दौलत काजी कृत सति मैंना लोर- चन्दानीके आधारपर चन्दायनकी क्या आदिवे सम्पधर्मे विसी प्रकारकी कन्पना करना भ्रम उत्सन करना मान है। कथा-स्वरूप की विशेषता चन्दायनकी कथा, अपने विसी भी रूपमें भारतीय कथा-साहित्य-सस्कृत या अपभ्रश-में नहीं पायी जाती । वह अपने आपमें अनूठी है। हमका सबसे बडा अनोखापन इस बातम है कि यह क्या नायक प्रधान न होकर नायिका प्रधान है। क्थाका आरम्म नापिकावे जन्मसे आरम्भ होता है और उसके जीवन की घटनाओंको लेवर ही कथा आगे बढ़ती है । उसके सारे पान नायिका चाँदको केन्द्र बनाकर सामने आते हैं। लोरक, जिसे इस काव्यका नायक कहा जा सकता है, यही भी मुख्य पानसी तरह उभरा हुआ प्रतीत नहीं होता। कयामे वह हमारे सामने सहदेव रूपचन्द युद्धवं समय पहली बार राहदेवर सहायक वीरके रूपम आता है। युद्ध समाप्तिा पश्चात् यदि चाँद उसकी ओर आकृष्ट न होती, तो उसका कोई महत्व न होता । सामान्यत नायक ही नायिकाकी प्राप्तिसरी वेग किया करते हैं, किन्तु इस प्रकारकी कोई भी चटर लोरककी ओरसे आरम्भ नहीं होती। नायिका चाँद हो, सामान्य नायिकाओके सामान्य स्वभावये सर्वथा प्रतिकूल, लेरकको प्राप्ति करनेकी ओर सचेष्ट होती है और युक्तिपूर्वक उसको अपनी ओर आकृष्ट करनेका यत्न करती