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होगी । अर्थात् उनको दृष्टिम दौलत फाजीने दाउदके चन्दायन और साधन मैना-सतको एक्मे जोड पर अपने कान्यकी रचना की है, समूचा काव्य साधनको रचनाका रूपान्तर नहा है। इस धारणा फलस्वरूप चन्दायनयी क्थाकी कल्पना बगला लौर-चन्दानी पे आधार पर की जाती रही है। परिशिष्टमे हम सवि मैना उ तौर-चन्दानीकी स्था दे रहे हैं । उसे देखने मानसे यह स्पष्ट हो जायेगा कि उत्त बँगला पाव्य और चन्दायन मूल्म सेरक और चाँदपी प्रेम क्या होते हुए भी दोनों रूप और विस्तारमे इतना अन्तर है कि बँगला काव्यको चन्दायन या रूपान्तर नहीं कहा जा सकता। बँगला काव्यकी कथा चन्दायनकी तुलनामे अत्यन्त सक्षित है । उसमे हरी पाटनपे मार्गमे लेरक और चाँदपे सामने आनेवाली विपत्तियों और पठिनाइयो की कोई चर्चा नहीं है। इस क्याम लोरक द्वारा मैनाये परित्यागमें चाँदया कोई योग नहीं है । लोरक स्वेच्छया बनम जाकर रहने लगता है और वहाँ वह योगीये मुरासे वन्दानीकी रूप प्रशसा मुनता है। चन्दायनमें चाँदको रूप प्रदासा योगी राजा रूपचन्दधे सम्मुख करता है, जिसका गला अन्यम पोई उल्लेख नहीं है। बॅगला कथामें लोरख योगीसे चन्दानीकी रूप प्रशसा मुन पर चन्दानीये पिता राज्यमे जाता है। वहाँ चन्दानी लोरक्यो देसती है और लगेरक चन्दानीसरी छवि दर्पणमें देखता है और दोनों एक दूसरे पर आसत्त होते हैं । तदनन्तर ओर चन्दानीके महलमे प्रवेश करता है और उसे हे भागता है। चाँदका पति बावन होरक्से ल्डने आता है और मारा जाता है। रोरक अपने स्वमुरये राज्यको सैरता है । लौटते समय चन्दानीको सॉप काटता है और उसे एप योगी अच्छा करता है। पश्चात् दोनों सुख पूर्व राज्य करते हैं। चौदह वर्ष पश्चात् मैना रपये पास ब्राह्मण भेजती है और तब लोरफ लौटता है । इन घटनाओंचे वर्णनका दंग भी चन्दायनसे बहुत भिन्न है। ___ क्या इस रूपसे स्पष्ट झल्पता है कि दौलत काजी सामने लोरम-चौदयी दाउद कथित यहानी नहीं थी। बहुत सम्भव है, जैसा रिदौलतकाजी ने कहा है, साधनने भी लोरर-चाँदकी प्रेम कहानी अपने दगपर लिसी हो और वह काव्य इंगे ऐ रूप उपरयन टोफर मैंना सत येल्प मात्र हो उपलब्ध हो। माताप्रसाद गुप्तकी धारणा है कि साधन वृत मैना-सत चन्दायनये एक प्रसग स्पर्म कहा गया है ।' उनकी धारणापा भी आधार दौरतकाजीका दी ग्रगला पाव्य है । चन्दायनरी यम्यईवाली प्रतिरे साथ मैना-सतये चार पृष्ठ मिरे थे, इस बातको उन्होंने अपने क्थनका प्रमाण माना है। पर इस तथ्यको सिद परनेये लिए सम्बई प्रतिका साक्ष्य प्राह्य नहीं है। मैना-सतये ये चार पृष्ठ पर रूपसे १. भारतीय साहित्य, वर्ष १, भक, १४ १६४ । २. भारतीय साल्यि , वर्ष ४, भक २,१.४९८ ।