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उसने मैंनाको मनाया और विश्वास दिलाया कि मैं तुम्हें चाँदसे अधिक प्रेम करता हूँ। उसने चाँद के साथ मिलकर रहनेका उससे अनुरोध किया। (४४६४४८) ५६-गोवरमं यह बात पैल गयी कि मैंना आगन्तुको साथ मैनी रखती है। सोलिनने यह बात जाकर अजयीसे कहा और गुहार लगायी। अजयी तत्काल घोड़े पर सवार होकर आया और लोरक भी लड़नेरे लिए निकल पडा। अजयीने दौडकर साँडा चलाया। लेकिन वह बीच में ही टूट गया। तब लोरकको उसने पहचाना और दोनों एक दूसरेके गले मिले । अजयीने लोरस्से कहा कि इस तरह छिरे कशे हो, अपने घर चलो । तत्काल औरक अपने घर आया और मौके पाँव पडा । सोलिनने दोनों बहुओं (चाँद और मैना) को बुलाया। दोनों पाँव पडकर गले मिलीं और तीनों सुरासे रहने लगी । सारे गोवरमें प्रसन्नता छा गयी । (४४९ ४५०) ५७-लोरकने अपनी मासे पूछा कि मैंना कैसे रही, कैसे भाई रहे। तब सोलिनने बताया कि तुम्हारे पीछे बावन आया था। उसने मैनाको गालियाँ दी। अजयीने आकर मैनाको बचाया । तुम्हारे पीछे महरने नाई भेजकर मॉकरको कहलाया कि रक देश छोडकर हरदीपाटन भाग गया है। मॉकर अपनी सेना लेकर आया । कॅवरूने अवेले उसका सामना किया, पर वह अकेला क्या करता, मारा गया। एक तो तुम्हारा दुख था, दूसरा यह दुख लग गया । दिन भर रोती और रात भर जागती रही हूँ। (४५१ ५५२) (इसके आगेका अश उपलब्ध नहीं है, जिससे कयाके अन्तरे सम्बन्धमें कुछ नहीं कहा जा सकता। पर अनुमान होता है कि अपनी माँ की कष्ट कथा सुनकर लोरक अपने शनुओंके विनाशमें रत हुआ होगा, पश्चात् अपनी दोनों पहिलओं के साथ सुख पूर्वक जीवन बिताकर स्वर्ग सिधारा होगा।) कथा सम्बन्धी प्रान्त धारणाएँ चन्दायनकी कथाका उपर्युक्त स्वरूप सामने न रहनेके कारण दो अन्य प्रन्यों के आधारपर विद्वानोंने कथाके सम्बन्धम कुछ अद्भुत कल्पनाएँ प्रस्तुत की हैं। कुछ आगे कहनसे पहले उनका निराकरणकर देना उचित होगा। वगला भाषामे सत्ति मैना उ लोर-चन्दानी नामक एक काव्य ग्रन्थ है जिसकी रचना सतरवी शताब्दी में दौलत काजी और अलाओल नामक कवियोंने की थी। प्रणेताओं के कथनानुसार उनका यह काव्य साधन नामक कविको गोदारी मापाम लिसे काव्यका बगला रूप है । साधन कविकी मैना-सत नामक काव्यकी नागरी और फारसी लिपमे लिखी अनेक प्रतियाँ मिलनी है। सावन कृत मैना-सत और उपर्युक्त बगा काव्यके उत्तराशम बहुत साम्य है, अत कहा जा सकता है कि अगला फाच्या आधार मैना-सन ही रहा होगा । पर उसके पूर्वाशको तुलनाके लिए ऐसी कोई सामग्री प्राप्त नो जिसे साधन कृत कहा जा सके । उसके अभावमें वासुदेव शरण अमालको धारणा हुई कि यह अश दाउद कृत चन्दायन पर आश्रित