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(कविने यहाँ शिकारियों द्वारा लये पशु पक्षियों तथा भोजन सामग्री तरकारी, पकवान, चावर, रोटी आदिका विस्तारपूर्वक वर्णन क्यिा है ।) (१४९ १६०) १७--नागरिक लोग महर घर आये और ज्योनारपर बैठे । तर चाँद शृगार कर धौरहरपर आवर सटी दुई। उसे देखकर लोरक खाना भूल गया । उसके लिए भोजन विषयत रो गया । घर लौटते ही वह चारपाईपर पर गया । यह देखकर उसकी माँ मोलिन रिलाप करने लगी। कुटुम्बी जन आदि एकत्र हुए, पण्डित, वैद्य, सयाने बुलाये गये। सभाने कहा कि उसे कोई रोग नहीं है। वह काम विद्ध है। (१६१ १६५) १८-बिरसत राजार गयी तो उसके कानाम गोलिनका करुण विलाप पडा। वह उसके घर पहुँची और रोनेरा कारण पूछा। सोलिनने लोरको दुरवस्था कह मुनायो । मुनकर पिरस्पतने पूछा कि तुम्हारा रोगी कहा है, मैं उनके रोगी औषधि जानती है। खोलिन उसे लोरस पाम ले गयी। चिरस्मतने उनसे अग अगको देखा फिर बोली-मैं महरने मदारकी भण्डारी और चाँदकी धाय हूँ। में बुलानेपर आयो हूँ, आँस चोलकर अपनी रात कहो । चाँदका नाम सुनते ही लोरर चैत्य हो गया और बोला कि सन्जाये कारण अपनी व्यथा नहीं कह सकता | यह सुनकर सोलिग अलग जा सडी दुर्द और तत्र रकने अपने मनकी व्यथा पिरसतसे कद्द मुनायो। बिरस्पतने इस पातको भूल जाने को कहा । लोरक उसन पाँव पाडपर चाँदसे मिलन करा देनेका अनुरोध करने लगा । चिरस्पत द्रवित हो उठी और बोली कि तुम शरीरमें भभूत लगाकर जोगी बन पर मन्दिरमें चलकर बैठो। यहाँ दर्शनये लिए भक्त आयेगा, तुम यथेच्छा देखते रहना । यह कहकर रिस्पत गहर निस्ली। निक्ल्ते ही सोलिनने उनके पैर पकड लिये । बिरस्पत ने कहा कि तुम्हारा रोगी अच्छा हो गया है। नहा धोकर पूजा करो और लोरक्को नहला धुलाकर उसपर कुछ धन न्यौछावर कर उसे नाहर भेज दो । यह कहकर वह चाँदके पास लौट गयी। (१६६ १७३) १९-रिरस्पतये क्यानानुसार रोक जोगी रनकर मदिरम जा बैठा । वह एक वर्पतक मन्दिरको सेवा और चाँदवे प्रेमरी कामना करता रहा । कार्तिरमें जब दीवाली का पर्व आया तब चाँद अपनी सखियोंसे लेकर दीवाली सेल्ने गाने चली। रास्तेमें उसका हार हर गया और मोती विसर गये । तर पिरस्पतने चाँदसे कहा कि तुम मन्दिरमें चलकर आराम करो। ये सरियाँ हार पिरोकर रायगी। यह मुनकर चाँद मदिरके भीतरनाचे गया । सनी (पिरस्पत)ने मन्दिररे भीतर झाँककर कहा कि इस मन्दिरमें एकात्री आदिगये हुए है, उनो देखते ही सारे पाप भाग जाते हैं। चाँदने उस स मरे दिन स्पीस नवाया। योगी चाँदको देखते ही मूलि हो गया । चाँद । युद्ध आरम्भीर रित्पतरे पृटनेपर जोगीको यति कह मुनायो। .. .आपरे पदिया और चाँदने उसे गोमें पहन लिया। ठग रिस्पत कर सा । - बायो र चल, घरपर महरि घररा रही होंगी ।(१७४ १८१) म