३ पारणक-पद्रह मात्राओंका पद । इसमें तीन मानाएँ लघु होती हैं। कहीं कहीं ल्यु गुरु रूप भी मिलता है। ___ आठ यमकों वाली वात भी वेवल सिद्धान्त रूप है । उपलब्ध अपभ्रश काव्यों के कइवकोंमे ६ से लेकर २०२. यमक तक पाये जाते हैं। ये इस बातके द्योतक हैं कि कवियोंने आट यमको वाला नियम कभी भी कठोरताके साथ पालन नहीं किया । घत्ताके द्विपदी, चतुष्पदी अथवा पदपदी होनेका विधान है पर अधिकाश पत्ता चतुष्पदी ही पाये जाते हैं। घत्ता प्रयेक पट सात मात्राओंसे लेकर सत्तरह मानाओं हुआ करते थे। पदोंकी व्यवस्था अनुसार घत्ताके तीन रूप कहे गये हैं-(१) सबसम (२) असम और (३) अन्तरसम । सबसम घत्ताम चारों पदोंकी मात्राएँ समान होती है और मात्राओकी सरया अनुसार सबसम पत्ताके नौ रूप कहे गये हैं। अधसम पत्ता में प्रथम दो पदोकी मात्राएँ एक समान और अन्तिम दो पदोको मालाएं पहले दो पदोंसे भिन्न कितु परस्पर समान होती हैं। मानाओंकी संख्या गणना अनुसार अथसम पत्ताके ११० रूप बताये गये हैं। अन्तरसम घत्तामें प्रथम और तृतीय पदोंकी और द्वितीय और चतुर्थ पदोंकी मात्राएँ समान होती थी और वह प्रसादबद्ध होता था। अन्तरसम घत्ताव भी मात्रा भेदसे ११० रूप होते थे। इस प्रकार घत्ताके रूपमें २२९ छन्द रूपोंके प्रयोगका विधान अपभ्रशने पिंगल शास्त्रोंम पाया जाता है। इन तथ्योको यदि ध्यानमें स्पकर चन्दायनके छन्दोंकी परखकी जाय तो स्पर ज्ञात होगा कि दाऊदने कड़वकन्न रूप अपनाया है और उसके शरीरमे पॉच यमक रखे है और अन्तम एक पत्ता दिया है। उनके सभी यमक सोलह मानाओं वाले नहीं हैं कुछ पन्द्रह मात्राओ वाले भी हैं। चन्दायनमें प्रात दोनों प्रकारके यमकों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं - सोलह मात्राएँ (वदनक) 1-ला पार नम देह न आवइ । चाँद घोर मह भरम दिखावइ ।। -९०१३ चौदह धान देखि पा लागा। पाप केत बरसहिं कर भागहि ॥ -१२ २-कुण्डर सोन जरे ले हीरा । चहुँ दिमि बैठि विदारय योरा॥-९५।। पद्रह मात्राएँ (पारणक) परें लबिसेखी धनों। और लक पातर वर गुना । -९०१४ इसी प्रकार दाऊटने धत्तारे भी अनेक रूपोका प्रयोग अपने काव्यमें किया है। उनके कुछ रूप इस प्रकार है -
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