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है कि-सम्भव है चौदाको पाथिव पारा प्रतीक माना गया हो, जैसा कि निम्न लिखित पतियोंसे प्रस्ट होता है- बिन करिया मोरी डोले नाया। नीक सुनार पन्त न भाषा । x आ तो धीर जो आ सोइ परस । सरज घीन जो जरत सघारस ॥ मानवीय आसक्तिमी असारता और ईश्वरीय प्रेमकी सारवत्ताका जो आभास कथानकर्म छिट फुट पाया जाता है, उसी कारण सम्भवत उस समय सूपी साधक उसमे प्रभारित होते थे। उसरे विरह वर्णनों में और प्रेमी अभिव्यत्तिम परामा सत्ता प्रति अनुराग और तरपनी अलक मिल जाती है। इन पत्तियों द्वारा विश्वनाथ प्रसादने काव्यमें रहस्यवादकी प्रकृतिकी सम्भावना प्रकट की है। इसा विपरीत माताप्रसाद गुप्तरा कथन है कि-अपनी रचनाव अर्थ विचारपर बल देते हुए कविका यह कहना हिरदइँ जानि जो चाँदारानी स्पष्ट रूपमे क्याके रहस्यपरक होने का निर्देश परता है।' कि तु यदि ध्यानपूर्वक सम्पूर्ण काव्यसे देखा जाय ता उसम पिसी भी पक्तिम मानवीय आसत्तिती असारता और दारीय प्रेममी सारवत्ताया आभास नहीं मिलता । विश्वनाथ प्रसादन जिन पत्तियों की ओर सकेत किया है, वे पत्तियाँ,यदि मेरी ऑसोंने मुझे धोया नहीं दिया है तो, सम्बद प्रतिम (जिसका उहोंने सम्पादन रिया है) जथवा रिसी अय प्रतिमे यही नहीं है। इस कारण प्रस्तुत सदर्भमें इन पचियोग उद्धरण कोर अर्थ नहीं रखता। माताप्रमाद गुप्तने जिस पनिस चन्दायनरे सष्ट रूपसे रहत्यपरक होनेश निप्पर्य निराला है, उसका ये टीस्से वाचन करनेम असमर्थ रहे हैं। उस ये पुन पढनेका क्प्ट पर । उसमा उचित पाठ है- ___ हरदी जात मो घाँदा रानी । नाग डमी हुत सो महिं यसानी ॥३६०३ ... अर्थात् जो चाँदा गनी हरलीना रही थी, वह जिस प्रकार नागसे उसी गयी . उसका मैन बान दिया।'. लोकप्रियता विश्वनाथ प्रसादने जागरा मरणको प्रस्तावनाम एक नवीन और मह वपूर्ण सूचना प्रस्तुत की है कि सन् १६१९ ६० में रूपावतो नामर पर प्रेमाख्यानकी राना हुई थी जो अभी अप्रकाशित है। उमसे उन्होंने निम्नलिपित उदरण दिया है- होरक चन्दा मैना प्रीतिह को तिरे। रानपर मिरगावति किमि लिखित परे । १-चही, पृ०१६। २-भागरा मसरण, गेरवहा भूमिका ।