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बहुरचन चन्दायनमें प्रथम और मध्यम पुरुयकी वर्तमानकाल्फि क्रियाओंका प्रयोग कम है । उत्तम पुरुषके रूप जो हैं, ये उपयुक्त रूपोंसे सर्वथा भिन्न हैं । यथा-आपहि, चढ़ावहिं, बहिराहिं, साय, कदही, फरही, मुहावइ, आवइ, भावइ आदि। । उक्ति-व्यक्ति प्रकरणके वर्तमानकालिक रिया के कर्मवाच्य रूप हैं- पढ़िय, जेपिअ, सेरिअ, पाइअ आदि । चन्दायनम इसका रूप लेतस, देतस आदि है। उक्ति व्यक्ति प्रकरण की वर्तमानकाल्कि विधि क्रियाएँ उकारान्त है। यथा-फरु, फरउ । चन्दायनमें इस प्रकारकी वर्तमानकालिक विधि नियाओका सर्वथा अभाव है। भूतकालिक क्रियाएँ उक्ति-व्यक्ति-प्रकरणमें अत्यल्प हैं। जो है, उनके आधार पर सुनीतिकुमार चादुर्याने अर्मक क्रियाओंके निम्नलिखित रूप स्थिर किये है:- एक्वचन गये भा, भई भये, भई बाढ़ा आ आये चन्दायनमें अर्मक भूतकालिक रियाओये अनन्त रूप मिलते हैं । यथा--- घरसि; भा, आवा, बुलाया, पदावा, कढ़ा, चदा; छाड्यो, जान्यो, तग्यो, लीन्हो, भई, प्रकटी, जानी, वसानी, पठाई, दीन्ह, कीन्ह, लीन्द, गये, बैठे, दीठे, सनाये, उठाये, गये, भयो। ' उक्तिभ्यक्ति प्रकरणमे भूतकालिक सकर्मक यिाओंके रूप है- कियेसि,देसेसि, पावेसि । चन्दायन इसके स्प है दिवावा, भरावा, हँकराया। बाढ़े यथा- लेक दहि दूध दरब दिवाना सीप सिंधोरा मांग भरावा पाटनराव शेर करावा उक्ति-व्यक्ति-प्रकरणकी भविष्यत्याल्कि अपर्मक रियाओंके रूप हैं:- करिहौं, करिहसि, करिह, करिहति । चन्दायनमे हमे निम्नलिखित दगफे प्रयोग मिलते हैं:-