३२ तथ्यको नहीं देख सकते कि चन्दायनको रचना न तो अवधी वातावरणमे हुई यो और न उसका आरम्भिक प्रचार अवधी क्षेनरे बीच था । अब्दुर्कादिर बदायूनीने स्पष्ट शब्दोंमे कहा कि चन्दायन दिल्ली सल्तनतके प्रधान मन्त्री जोनाशाहके सम्मानमें रचा गया था और दिल्ली में मखदूम शेष तकीउद्दीन रल्यानी उन समाज बीच उसका पाठ क्यिा करते थे। यह क्थन इस यातको ओर सवत करता है कि चन्दायनकी भाषा वह भाषा है जिसे दिल्लीके प्रधान मन्त्री जौनशाहसे लेकर दिल्लीकी सामान्य जनतातक पढ और समझ सकती थी। अन्दुकादिर बदायनीने इस भाषा सम्बन्धमे हमें अपनी कल्पनाका कोई अवसर नहीं दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में बता दिया है कि इस मसनवी (चन्दायन) की भाषा हिन्दवी है । यह हिन्दवी निश्चय ही वही हिन्दवी होगी, जिसका प्रयोग चिस्ती सन्त शेस परीदुद्दीन गजशकर और ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया अपने मुरीदो- से बातचीत करते समय किया करते थे। उसी हिन्दवी को जो दिल्लीके सूफी सम्प्रदाय के सन्तो द्वारा व्यवहृत होती थी और राजसभासे लेकर जन साधारणमे समझो जाती अथवा जा सकती थी, दाउद ने अपने काव्य चन्दायनके लिए अपनाया होगा और उसीमे उसकी रचना की होगी। अतः चन्दायनकी भाषाको अवधके सीमित प्रदेशमें ही बोली और समझी जानेवाली भाषा अवधीका नाम नहीं दिया जा सकता। चन्दायनमें प्रयुक्त भाषा निसन्देह ऐसी भाषाका स्वरूप है, जिसका देशम पापी विस्तार और विकास रहा होगा। किन्तु खेद है कि हमारे सम्मुस तत्कालीन जनजीवन व्यवहारमै आनेवाली भाषाका कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं है, जिसके आधारपर अधिक विस्तार और विश्वासके साथ इस क्थनकी समीक्षा की जा सके। बारहवीं शताब्दीमें काशीमें रचा गया उक्ति-व्यक्ति प्रकरण नामक एक व्याकरण अन्ध प्रकाशमें आया है, जिसमें एक प्रादेशिक भाषाके स्वरूपको सस्कृतके माप्पमसे समझानेकी चेष्टा की गयी है। इस भाषाकी पहचान सुनीतिकुमार चाटुाने आरम्भिक पूर्वी हिन्दी अर्थात् कोसली (अवधी )के रूपमें की है। यदि चन्दायनकी भाषा वस्तुतः अवधी है, जैसी कि विद्वानोंको साधारणतया धारणा है, तो उसपे शब्दोंकी उक्ति-व्यक्ति प्रकरण शन्द रूपोंके गथ नैक्थ्य और साम्य होना चाहिये। इस प्रकारको तुलनात्मक परीक्षा के लिए दोनों ग्रन्थों रिया स्पोको देखना उचित होगा। वर्तमानकालिक नियाओं में सामान्य वर्तमानके निम्नलिखित कर्तृवाच्य रूप उक्ति-व्यक्ति प्रकरणमें मिलते हैं। एकवचन बहुवचन प्रयम पुरुप करउ मध्यम पुरुष कासि उत्तम पुरुष पर कर करति करहु करहु
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