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लिपि स्वरूपको इन कठिनाइयोंके साथ साथ सबसे बड़ी कठिनाई जो हमारे सम्मुरा रही है, वह थो चन्दायन की पृउभूमिका अमात्र । हमारे पास कोई ऐसी वस्तु नहीं थी, जिससे पाठके अनुमानके लिए कोई सहारा मिल सके। एक ही शब्द पुरुस, विरिख, परख कुछ भी पढ़ा जा सकता है। यह तो प्रसग से ही निश्चय किया जा सकता है कि वास्तविक पाठ क्या है। जब प्रसग ही शात न हो तो किया क्या जाय ! प्रसग ज्ञात होनेपर भी कभी कभी यह कठिनाई बनी रहती है। शब्दरे पठित दो वा अधिक रूपमेसे कोई भी सार्थक हो सकता है। यथा-नट गावह जहॉ और नित गावहं जहाँ । ऐसे स्थलोपर दोमेंसे कौन-सा पाठ ठीक है, निश्चित करना सहज नहीं होता। चन्दायनके पाठोद्धार करनेमे ऐसी हो तथा अन्य अनेक प्रकारकी कठिनाइयाँ हमारे सामने रही हैं। एक एक शन्दको समझने और उसका रूप निर्धारण करनेम घण्टों माथापच्ची करनी पड़ी है। कभी कभी तो एक पक्तिके पढनेमें दो-दो तीन तीन दिन तक लगे है। हमारी कठिनाइयोंका अनुमान वे ही लोग कर सकते है जिन्होंने बिना किसी नागरी प्रतिको सहायताके इस प्रकारका पाठ-सम्पादन किया होगा। अपने सारे श्रमके बावजूद हम दृढता पूर्वक नहीं कह सक्ने कि हम ग्रन्थका पाठोद्धार करनेमें पूर्ण सफल हुए हैं। कितने ही ऐसे शन्द हैं जिनके शुद्ध पढ़ पानेने सम्बन्धमे स्वय हमें सन्देह है। उनमेंसे कुछ तो विकृत पाठ हो सकते हैं, जिनका निराकरण तो कुछ और प्रतियों के प्रकाशमैं आनेपर ही सम्भव है । कुछ ऐसे भी हो सकते हैं, जिन्हे हमने पढ़ा तो ठीक हो, पर अर्थ-ज्ञानके अभावमें हम उन्हें सन्दिग्ध समझते हों। ऐसे शाब्दोंकी भी कमी न होगी जिन्हें हम शुद्ध पढ़ ही न सके हों । इस प्रकारके अप-पाठके मूलमें बिन्दुओंका अभाव ही मुख्य होगा। उन्हे मूल शब्दकी कल्पनाके सहारे सुधारा सकता है। प्रति-परम्परा, पाठ-सम्बन्ध और संशुद्ध पाठ -- प्राचीन ग्रन्थोके सम्पादनको आधुनिक प्रणा के अनुसार विभिन्न प्रतियोमें जो विभिन्न पाठ मिलते हैं, उनमें से कौन सा पाठ मूल अथवा मूलके निकट है, इसे जानने के निमित्त प्रति परम्परा ओर पाठ-सम्बन्धका शोध किया जाता है और तदनन्तर सशुद्ध पाठ (क्रिटिकल टेक्स्ट) प्रस्तुत किश जाता है । प्रस्तुत काव्यका इस प्रकारका कोई सशुद्ध पाठ (क्रिटिकल टेक्स्ट) उपस्थिन करने का प्रयास हमने नहीं किया है । यह बात नहीं कि हम उसके महत्त्वसे परिचित न हो और उसकी आवश्यकता न समझते हो। इस दिशामे हमारी कठिनाई यह है कि कायके उपलब्ध ३९२ कडवकों में- से २९२ कडवक ऐसे हैं जो किसी एक ही प्रतिमें मुख्यतः रीलैण्ड्स प्रतिमे प्रात हैं। उनके प्रति पाठके अभावमं किसी प्रकारके सशुद्ध पाठ उपस्थित करनेका प्रश्न ही नहीं उठता। शेष १०० कडवकोंमेंसे निम्नलिरिरत ८८ कडक ऐसे हैं जो रीलैण्ड्स मति के अतिरिक्त अन्य किसी एक प्रतिमें हैं :-