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३६९ पण्डितजी बोले---उस दिन लग्न देखनेमें मुझसे गडबडी हो गयी। आजसे सात दिन तक रात दिन भद्रा है। तब तक आप बारात यहीं टहराइये । इतना सुनकर सवरू कहा-दूर देशसे पारात यहाँ आयी है । पासम जो रसद वगैरह था, सब समाप्त हो गया है। यदि आपलोग ऐसी व्यवस्था पर दें कि हमारी बारात भूखों न मरे सो सात दिन क्या, हम सात महीने ठहर सकते है। शिवचन्दने कद्दा-हम बारातकी सारी व्यवस्था कर देंगे। किन्तु हमारे राजा का आदेश है कि सब बूटीको निकाल बाहर किया जाय । आप उहें नहीं निकाल्ते तो महाकी बड़ी बेइज्जती होगी। यह मुनकर सॅवरू अत्यन्त दुसी हुआ । बोला-हमारी बारातमे सर तो ऐसे ही जवान हैं जिनकी अभी रेख उठ रही है । धूदोंमे अकेले काका ही हैं। उनको हम बारात से अलग कर देंगे। और उसने उन्हें एक टोकरीमें बन्द कर दिया । यह देखकर कि बारातमें कोई बुट्टा नहीं है शिवचन्द घर वापस आ गये। प्रत्येक आदमीचे लिए एक मन चावल, एक मन आटा, एक बकरा और एक बोझ ऊख और एक भट्ठी गराब भिजवाकर उन्हों सँवरूको लिसा-हम जो रसद भिजवा रहे हैं वह वेवल चौदह वत्त के लिए है। यह इसी के अन्दर खत्म हो जानी चाहिए। यदि कुछ बच रहा तो आपको सीधे गौराका रास्ता नापना होगा। हम वेटीसे ब्याह नहीं करेंगे। पत्र पढयर सॅवरू सोचमे पड गया ! टोकरीमे बन्द काकासे जाकर कहा- महराकी यह शरारत हमसे सही नहीं जाती। रसदका देर लगा दिया है और कहता है कि रसद समाप्त नहीं होगी तो हम न्याह नहीं करेंगे। बताइये कि किस प्रकार रसद समाप्त हो । यह सुनकर काकाने कहा-अहीर लडके होकर भी अक्ल नहीं है। सारी बारात छप्पन हजार है। एक बार दस मन आटा सनवा दो और एक एक लोई देने ल्गो । कोई कन्या खायेगा कोई पकाकर सायेगा, मालूम भी न पडगा और सभी भूखों रह जायगे । इसी प्रकार चावलको भी बरवाओ। इस प्रकार दिन-रात रसद बँटवाते जाओ। कभी किसीका पेट नहीं भरेगा और रसद मी दस जूनमें ही समास हो जायगा । इसी तरह तुम शराबको मीकी भी व्यवस्था करो। दस बीस ससी (बकरा) एक साथ करवाओ, टुक्ड़ टुक्डे सबको बाट दो। कोई क्या सायेगा कोई पकाये । इसी प्रकार उसको भी बाटो। जय राव रसद समान हो जाये तो महराको और रसद भेजनेके लिए लिख भेजो। सँघस्ने इसी प्रकार रसद बाटना शुरू किया। इतनेमे महाका दूसरा पत्र आया। सवरूने उसे पदा और कायाके पास फिर गया और बोला-महरा हमें बेकार परेशान करना चाहता है। इस बार उसने लिख भेजा है कि हमारे पास कोयलेकी रस्सी भेज दो ताकि हम मइप बाधरर तैयार कर । हमने तो कमी कोयलेकी रस्सी सुनी ही नहीं। सुनकर काकाने पहाजाओ दस आदमी भेजकर सोनपी नदी किनारेमे