यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३५३ गया। सवरू बुदधेरे घर गई लाइ प्यारमे परने लगा। जब वह कुछ बड़ा हुआ तो भैंस चराने बोहा जाने लगा। योहामें एक अखाडा था, जिसका गुरु मितारजइल नामक धोषी था । भैंस चराते चराते सवरू उस अपड़े सम्मिलित हो गया और कुस्ती ल्डने लगा। एक दिन बुदबे अपनी दालानम बैठा हुआ था, तभी एक साधूने आवाज दो-तुम्हारे बाल बच्चे कुशल्से रह । मुझे भूख लगी है, कुछ भोजन पराओ। यह सुनकर घुटने कहा-महाराज । बार बच्चे तो मेरे हुए ही नहीं, बुशल्से कौन रहेगा! साधूने यह सुनकर कहा-तुम तो बड़े भाग्यवान हो। आश्चर्य है अब तक तुम्हें कोई सन्तान नहीं हुई। अन्स, तुम शिवका पूजन करो, तुम्हारी मनोकामना शीम पूरी होगी। तुम्हारे प्रतापी पुन जन्म लेगा, उसका यश ससार गायेगा । तुम उसका नाम तोरिक मनियार रसना। ___तदनुसार पति पत्नी दोनों मनोयोगसे शिरकी अराधना करने लगे। कुछ दिनों पश्चात् शिरने प्रसन्न होर वर दिया--तुम्हारे महायली पुत्र होगा । उससे लडने बाला ससारमे कोई न ोगा। जब वह जन्म लेगा तो सवा हाथ धरती उठ जायगी। तदनुसार समय आनेपर ढखुइनवे गभमे रोरिकने जन्म लिया । पाँच बरसकी आयुमै लोरिक पाठशाला पदने भेजा गया। यहाँ वह एक ही वषम पढ लिसकर सब प्रकार योग्य हो गया ! जर वह दस वर्षवा हुआ तो वह एक दिन सवरूपे साथ बोहा गया । वहाँ सवरू आदिको असाम लड़ते देखकर लोरिक्ने भी गुरु मितारजदरसे अपना चेला पना रेनेको कहा । मितरजइलने समझाया- अभी तो तुम बच्चे हो, असा की कठिनाइयों नहीं जानते। यदि तुम्हारा तनिक भी अनिष्ट हुआ तो बुढचे राउत मेरी दुर्दशा पर डाल्गे।। रोरिकने शिष्य बनाने के लिए हठ पकड़ लिया और बोला-जब तक आप मुझे शिष्य नहीं बनायगे, मैं गोरा लेटफर नहीं जाऊँगा। लोरिकको इस प्रकार हठ करते देखकर मितारजइल्यो जब और कुछ न सूक्षा तो बोले-अस्सी अस्सी मनके मुंगरा (गदा) रखे हुए हैं। यदि तुम इदं उठा लो तो मैं तुम्हें अपना शिष्य बना लूंगा। अखाड़े में चार मुंगरा (गदा) रखे हुए थे। जिनमें दो अस्सी-अस्मी मनवे, तीसरा चौरासी मनका और चौथा अहासी मनका था। अस्सी मन वाला एक मुंगरा मेठया (पठया) चमार माँजता था, चौरासी मन वाला मुंगरा शिवधर और अहासो मन वाला मुंगरा सवरू भाँजता था । और अस्सी मन वाले दोनों मुंगरोंको मितारजाल अपने दोनों हाथ में लेकर भाजते थे। मितरजइल्सौ सात सुनकर लोरिक तत्काल उठ सडा हुआ और असाईमे ररो चारो मुंगराको फूल्के समान उदार आकाशमे पर दिया और ये जैसे ही नीचे आये उह उसने हाथों में पुन ल्प लिया। पिर चारों मुंगरोयो दोनो हाथोंमें रेवर भाँजने लगा। यह देसर मितारजद्दल आश्चर्य चरित २३