बादकी नहीं है। जो प्रतियाँ सचिन हैं, उनके चित्रोंकी क्ला-शैलीका अध्ययन कर उनका समय कुछ अधिक सूक्ष्मतासे निर्धारित दिया जा सकता है। क्लाममोके अनुसार काशी प्रति १५२५-१५४० ई०, बम्बई प्रति १५६०-१५७० ई०: रीलैण्ड्स प्रति, बम्बई प्रतिसे कुछ आगे पीछे और पजार प्रति १५७० ई. के लगभग तैयार की गयी होगी। बीकानेर प्रति-यह प्रति सवत् १६७३ (१६१. ई.) मे बीकानेरमै लिसी गयी थी और अर वह जयपुर रावत सारस्वत रिसी मिन (सम्भवत पुरुषोत्तम शर्मा) के पास है। यह प्रति तत्कालीन राजस्थानी कामदारी लिपिमे लिखी गयी है। इसमें ९||४६ इच आकारये १६२ पृष्ठ हैं और १३ साली पृष्ठों के पश्चात् पुष्पिका दी गयी है। यह प्रति आदिसे पूर्ण, किन्तु अन्तमें सण्डित है। बीच में किसी प्रकारको कमी है अथवा नहीं, यह परीक्षा अभावमे कहना कठिन है। अपने वर्तमान रूपमें सम्भवत' इसमे ४३८ कडवक है। इस दृष्टिसे यह शात प्रतियोंमे सबसे बडी है। इस प्रतिको रावत सारस्वतने अभीतक अपनेतक ही सीमित रसा है, जिसके कारण इसका उपयोग इस ग्रन्थमे नहीं दिया जा सका। इसके जो अश उन्होंने वरदामे प्रकाशित किये हैं, उन्हें देसकर ज्ञात होता है कि इसका पाठ कापी अशुद्ध और भ्रष्ट है। रामपुर पृष्ठ-रामपुर (मुरादाबाद, उत्तरप्रदेश) ये रजा पुस्तकालय में १०८५ हिजरी ( १६७४ ई.) को पारसी लिपिमें लिखी मलिक मुहम्मद जायसी के पदमावतकी एक प्रति है। उसरे आवरण पृठपर चन्दायन शीर्षकसे इस प्रन्यकी चार पत्तियाँ दी हुई हैं जो किसी अन्य प्रतिमे उपलब्ध नहीं है । इस कारण इस पृष्ठका महत्त्व है। विद्वानोंने इनपे अतिरिक्त कुछ अन्य प्रतिया भी अस्तित्वको बात कही है:- परशुराम चतुर्वेदीने अपनी नयी पुस्तक हिन्दीके सूफी प्रेमाख्यानमे यह सूचना दी है कि डलमऊके शिवमगलसिंहरे पास चन्दायनकी एक प्रति है जो देसने. तकको मुलभ नहीं है । यह सूचना उन्हें निलोकीनाथ दीक्षितसे मिली है । दीक्षित- से ही प्राप्त चन्दायनका एक कडवक परशुराम चतुर्वेदीने अन्यन उद्धृत किया है। रगे, देससर हमले चीक्षितपणे एस पर रिसा था जिसे उसमें उन्हें रमे लिया कि चन्दायन के किसी प्रतिकी जानकारी उन्हें नहीं है । उन्होंने उस वडवकको क्सिी सज्जनके मुससे मुना था । ऐसो अवस्थामे वास्तविकता क्या है यह कहना पटिन है । यदि डलमऊमें चन्दायनी कोई प्रति है तो उसे प्रकाशमे लानेकी चेष्टा की जानी चाहिये । यदि कोई लिसित प्रति नहीं है, वहाँके किसी सजनको कण्ठस्थ मान है तो भी यह महत्त्वकी यात है । उसे तत्काल लिपिबद कर देना चाहिये । विश्वनाथ प्रसादने अपने एक लेखमे लिखा है कि चन्दायनी एक पूरी १. हिन्दी के सूप प्रेमाख्यान, नई, १९६२, पृ. ३.। २.हिन्दी साहित्य, दितीय राग, पृ० २५० ।
पृष्ठ:चंदायन.djvu/३६
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