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३४३ नपुसक होने के कारण तुम्हारा चन्द्रानो पर कोई अधिकार नहीं। वास्तवमे में उसका पति हूँ। तदन्तर दोनों में धनघोर युद्ध छिड़ गया । धावन तीखे बाणीसे तौर पर प्रहार करने लगा और लोर उन बाणोंको काटने लगा | बाणाकी मारसे लोरका शरीर जर्जर हो उठा, फिर भी उसने गवसे बावनको ल्वारा कि घर जाकर अपने जीवनको रक्षा करो। इतने में यावनके एक माणकी चोटसे वह मूर्छित हो गया । चन्द्रानी इस युद्धको बडी कातरताके साथ देख रही थी। सारथी भित्रकटने देवा वि रडाईम बावनको जीतना कठिन है तो उसने छल्से काम रेने निश्चय क्यिा । चन्द्रानीके वस्त्रका एक खण्ड बाणमे वॉधकार उसने बावन पर छोडा। बावन को अपनी पत्नीसे याद आ गयी और उसने सोचा कि क्दाचित यह स्वध उस पर बाण चला रही है। उसका हाथ रुक गया । इतने में मित्रस्टने लोरकी मूवी दूर की। और उनेजित होकर पुन बावन पर टूट पडा । फिर दोनोमे युद्ध छिड गया। लोरने ब्रह्मास्त्र सधाना और बावनको मार गिराया। गिरते गिरते बावनने गोरकी वीरताको बडाईको और अनुरोध किया कि वह चन्द्रानीको अपनी पत्नी रूपमें ग्रहणकर उसके माता पिताकी सहायता करे। लोर चन्द्रानी का रथ आगे बढा । दोनों थक रमे थे। उन्होंने विश्राम करने का निश्चय किया। लोरने रथ एक पेडवे नीचे रोक दिया। धूम पिरकर सरोवररे पास एक निर्मल स्थान देखा । मित्रकठने घोडों को पानी पिलाया। सब लोगोंने भोजन पिया । पश्चात् सोपे सीने पर सिर रखकर चन्द्रानी सो गयी । लोर भी झपक्यिाँ लेने लगा । देव दुर्विपाक्से एक सापने आवर चन्द्रानी को डस लिया । चदानी वेवल यही कह सकी-अरे लोर, तू क्या कर रहा है । देस नाग मुझे मारे डाल रहा है। विध तेजीसे चढने लगा। मित्रकट ओर लोर घबरा उठे। मित्रकठने वहा- आप यही रहे, मैं ओषधि लेने जाता है। मित्रकटवे जाते ही चन्द्रानी निस्पन्द हो गयी। अपनी प्रेमिकाकी यह अवस्था देख लोर विलाप करने लगा। वह बार बार उसके रूप और गुणों की चर्चा करता। उसे पानेरे लिए उसने जो जो प्रयास किये थे, उन सका वह बरसान करने लगा। मिनाठको धनमें औषधि नहीं मिली। उसने सोचा चन्द्रानी अब तक मर गयो होगी। उसो मरते ही लोर का प्राण जाना निश्चित है। बिना लोरसे मेरा भी जीना किसी तरह सभव नहीं है। यह सोचकर मित्रकठ पानीमै वूद पड़ा। उसी समय एक योगी आया। उसने मित्राठ को पानीसे निकाला और आत्म हत्या करनेका कारण पूछा। उसने सब कहानी कह सुनायी। योगी उसे रेवर लोर और चन्द्रानी के पास पहुँचा । चन्द्रानी मर चुकी थी। लोर उस तपस्वीत्री औषधि बेकार समझकर स्वय मी मरनेको सैयार हुआ। मित्रकटने लोरको धीरज देते हुए तपस्वती पूजा करनेका अनुरोध किया और बताया कि मरे हुए एक राज पुत्रको मुनि मत्रसे जीवनदान मिल चुका है।