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में ही उसे चन्दावन कहा गया है। किन्तु एशियाटिक सोमाइटी आव बगाल (कलकत्ता)में संग्रहीत उत्त ग्रन्थको एक हस्तलिखित प्रति (अन्य सख्या १९९९) में उनका नाम स्पष्ट रूपसे धदायन या चन्दायन दिया हुआ है । चन्दायन नामसे ही रामपुरवाली पदमावतसरी प्रतिमें इस ग्रन्थका एक कडवक उधृत हुआ है। सर्वोपरि बीकानेर प्रतिमें इसे नुस्सः चन्दायन (चन्दायनकी हस्तलिखित प्रति) कहा गया है। इन सबसे स्पष्ट है कि दाऊदके काव्यका नाम चन्दायन है और उसे इसी नामसे पुकारा जाना चाहिये। रचना-काल मुनतखम-उत्-तवारीसमे चन्दायनके सम्बन्धमें जो कुछ कहा गया है उससे केवल इतना ही पता लगता है कि उसकी रचना ७७२ हिजरी (१३७० ई.) पश्चात् विसी समय हुई थी। अवध गजेरियरमें डलमऊके प्रसग में कहा गया है कि पीरोजशाह तुगल्कने वहाँ इस्लाम धर्म और विद्यारे अध्ययनके लिए एक विद्यालयकी स्थापना की थी। उस विद्यालयकी उपयोगिता इस बातसे प्रकट है कि मुल्ला दाऊद नामक कपिने ७१९ हिजरीम भापामें 'चन्दैनी' नामक प्रन्यवा सम्पादन किया । यह तिथि सात किमोरे प्रमादका परिणाम है, क्योंकि पीरोजसाहका शासन काल ७५२ और ७९० हिजरीवे बीच था। लगता है, प्रेसके भूतोंने ७७९ का ७१९ कर दिया है। परशुराम चतुर्वेदीने भारतीय हिन्दी परिषद (प्रयाग) से प्रकाशित हिन्दी साहित्य (द्वितीय खण्ड)में सनऊ विश्वविद्यालय के प्राध्यापक निलोकीनाथ दीक्षित से प्राप्त चन्दायनके चार यमक उद्धृत किये हैं। उनमेंसे एक यमकमें उसकी रचनाको तिथि इस प्रकार कही गयी है- परस सात सौ हत उन्यासी । तहिया यह कवि सरस अभासी॥ हमारे पूछताछ करनेपर त्रिलोकीनाथ दीक्षितसे सूचित किया कि उपयुक यमक किसी उपलब्ध प्रतिका अश नहीं है, वरन् चन्दापन कुछ अश किसी सज्जनको कण्ठस्य थे, उन्हींसे उन्होंने इसे नोट फर लिया था। इस प्रकार यह पाठ मौखिक परम्परासे प्राप्त है। इसके अनुसार चन्दायनकी रचना ७९ हिजरी (१० मई १३७७ ३० अप्रैल १३७८ ई.) में हुई थी । सम्भवतः इसी प्रकारको किसी मौखिक परम्पराके आधारपर गजेटियरकारों ने अपनी तिथि दी होगी। मिन्नु इस तिषिसे भिन्न तिथि बीकानेर प्रतिमे पायी जाती है। उसमें उपयुक्त यमक इस प्रकार है - यरस सात से होप एक्यासी। तिहि आह कवि सरसेउ भासी ॥ इसके अनुसार चन्दायन की रचना ७७९ हिजरामें नहीं, वरन् दो वर्ष पश्चात् ७८२ हिजरी (१९ अप्रैल १३७३ ७ अप्रैल १३५० ई.) में दुई थी। १ पृ. २५०, पादरिषणी ।