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टिप्पणी-(१) पौर-ब्राह्मण । (२) योभन-ब्राह्मण (३) कितहुत-कहाँ से । (५) सहदेसी-अपने देश का। (६) परहि-~-परौनियों से, भाही से। ४२६ (गैलैण्ड्म ३०५) गुफ्तने मिरजन बसेरे सलहे हमा अजीजान (मिरजनका घरपालीका कुशल समाचार कहना) कँवरू भाइ तोर महतारी । लोग कुंटुब घर मैना नारी ॥१ तोरै चिन्त रैन दिन आहहिं । नैन पसार तिहि मारग चाहहि ॥२ अन पानि चस देसि न भावइ । जागहिं रैन दिन नीद न आवह ॥३ पन्थ बटाऊ पूछहि लोरा । कोउ न कह सकूसर तोरा ॥४ सोक सो (मैनामाँजर) भई । झार बिरह अधिक जरि गई ॥५ दुरै ताहि न सोक, लोर तै जो दई न डराइ १६ तजके मारि चियाहुत आपन, लीन्हा (नारि) पराइ ७ मूलपाठ-(५) मैना यन मनों माँजर भई । (७) पुरुष (प्रगग के अनुसार यह पार सर्वधा अप्रगत है)। ४२७ (रीलपदम ३०५५ बम्बई ४२) पिपले आवर्दने निज गुफ्तने सिरजन पेश हारक (सिरजनका लोरकसे अपने यनिजकी बात कहना) हो रे बनिज गोरा' ले आयउँ । घिरव लेन को कवरू बुलायउँ ॥१ लेगये मंदिर जहाँ पतसारा । अउ नउलै के रया हॅकास र पूछसि कॉन पनिज तुम्ह आनौँ । कान देसहुत फियत पयाना ॥३ कहा देस में गांररॉ आय: । गये मॉम दोइ पुरुष चलायां ॥४ रहा लोर सभ आपन ठाँऊँ । गोचर का कॉमन सिरजन नाऊँ ॥५