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परिचय कवि दाऊद जीवन-वृत्तपर प्रकाश डाल्ने वाले तथ्योंकी जानकारीके साधन अभी उपलब्ध नहीं हैं। उहोंने चन्दायन आरम्भमे जो आत्म-परिचय दिया है, वह हमें उपलब्ध किसी प्रतिमे प्राप्त नहीं है। बीकानेरवाली प्रतिमे सम्भवत यह अश अनुषण है, किन्तु उस मनिकी जानकारी अभी तक रावतसारस्वत सक ही सीमित है। उहोने उसका जो सक्षिप्त विवरण परदा में प्रकाशित किया है उससे दाऊद के सम्बन्धमे कुछ ही बातोंकी जानकारी हो सकी है। बीकानेरवाली प्रतिो आदि शीर्षकमें दाऊदको डलमई कहा गया है। इससे ज्ञात होता है कि वे या तो डलमऊफे निवासी थे अथवा डलमऊ उनका निवास- स्थान था । दाऊदमे सलमऊका वर्णन अपने ग्रन्धमें किया है और उसे गगा-तटपर बसा बताया है । गगा-तटपर बसा हुआ डलमऊ आज भी उत्तर प्रदेशके रायबरेली जिलेका एक प्रसिद्ध कस्या है, जो रायबरेलीसे ४४ मील और कानपुरसे ६१ मील्पर स्थित रेलवे ज कश्न है । अवधये प्रादेशिक तथा रायबरेली के जिला गजेटियरमें कहा गया है कि दिल्ली के सुल्तान इल्तुत्तिमिश (अल्तमश)के शासन कालमें इस नगरने समृद्धि प्राप्त की थी। उसने समयमे वहाँ मसम बदरुद्दीन रहा करते थे। फीरोजशाह तुगलकके शासनकालमे यहाँ इस्लाम धर्म और विद्याके अध्ययन के लिए एक विद्यालयको स्थापना हुई थी। होफर सग्रहमे उपलब्ध एक पृष्ठसे अनुमान होता है कि दाऊदके पिताका नाम मल्कि मुबारिक और पितामहका नाम मलिक बयाँ था | मलिक मुबारिक डलमऊ मीर (न्यायाधीश) थे और उनपर दिल्ली सुल्तान पीरोजशाह तुगलकके मन्त्री खान ए. जहाँकी कृपा थी। मुगलकालीन सुप्रसिद्ध इतिहासकार अब्दुकोंदिर बदायुनीके कथनानुसार दाऊदको खान ए-जहाँके पुत्र औना शाहका आश्रय प्राप्त था। जान पडता है अपने पितारे सम्पर्कसे दामाद भी खान ए जहाँक और उसकी मृत्युके पश्चात् उसके पुत्र जौना शाहके कृपापात्र बन गये थे । दाऊदने अपने अन्यमे खान-ए-जहाँकी भूरि भूरि प्रशसा की है। यदि दाउदके पिता और पितामहकी उपाधि मलिक थी तो यह अनुमान पर लेना सहज है कि वे स्वय भी मलिक दाऊद कहे जाते रहे होंगे । मिश्रन्धुने उन्हें १ दे मलिक मुबारिक, शेख मुबारिकमे सवथा भिन्न थे, जि तारीख ए मुवारिकशाहीमें खान ए. जोंके निजी मौलानाका पुत्र (मौलानानादा) कहा गया है।