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एक एक आपुन बात चलावहु । झूठ साच आपुन तुम्ह पाबहु ॥३ उठि लोरक तो अइसा कहा । बइठ हूँटें यह जेतक अहा ॥४ सिंगी पूर चाँद हर लीन्हा । सगरें रैन खोज मैं कीन्हा ।।५ खोजत पायउँ हूँटा, धरेउँ फेरि के पार ६ इठ जटा लाग फिराँई, जानाँ मर सँयसार ॥७ (मनेर १७७५) गुफ्त[न] जेगी ई उन मन अस (जोगीका कहना कि यह मेरी सी है) पूछइ सभा कहहु वह लोरा । कउँन लोग घर कहवाँ तोरा ॥१ कहवाँ अइसी तिरी तैं पाई । काकर घिय यह कहवाँ जाई ॥२ काहे निसरहु दोइ जन होई । इतर साथ न अहह कोई ॥३ कउन पुहुमिहुत लोरक आइह । कहवा जाहु कहाँ वह (जाइह) ४ घर हुत काहे निसरे लोरा | लोग कुटुंब कछु कही न तोरा ॥५ काहि लाग तुम्ह निसरे, साच कहु तुम्ह वात ६ हम पुन देख नियाउ नियारहि, वृझि तुम्हरी यात ॥७ मूलपाठ-(४) गाइह (जीमके ऊपर अनावश्यक मरकज असावधानी वश दिया गया है। टिप्पणी-इस कवरका शीर्षक विषयसे सर्वथा मिन्न है। वस्तुतः वह स्वक ३८२ राशीर है। उसे लिपिकने दुहरा दिया है। ३८१ (मनेर १७८) पुरमीदने जाते गुवाल इरम लोप उन चाँदा (ग्वाली ज्ञात और रोक और चादका नाम पूछना) जात अहीर हम लोरक नाऊँ। गोचर नगर हमार पुर ठाऊँ ॥१ सहदेउ महर कह चाँदा घिया ! महर वियाह पारन सेउँ किया ॥२