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२९१ टूटें कहाँ लौर मॅगरावा । सिध बचन हुत मन महँ आया ॥३ सिध आइ लोरक पँथ ठाढ़ा । लोरहि ढूँटहि बोल जो बादा ॥४ दृनों कहहिं चाँद मुर जोई । औ तिह माँझ मुकाउज होई ॥५ चाँदा ठाढ़ी कौतुक देखइ, मुँह मँह पकत न आउ ।६ यक रेल औ गीत भुलाने, रावल सीस डोलाउ ॥७ ३७८ (मनेर १७६१) दरामयाने जोगी व लोरक गुफ्तगू शुदन (योगी और लोरकौ घातचीत) सिघ कहँइ तुम्ह काहे जूझहु । करहु गियान मन मँह झहु ।।१ समा करहु अउ करहु विचारा । दुहु को जीती को दुहु हारा ॥२ जुझइ चाहु जो पूछा भला । याहाँ जोरे लोरक चला ॥३ चाँद साथ भई औ सिध भवा । फुनि नगर-समा मह गवा ॥४ नगर उहाँ पै बइठ जो दीठी । इदर समा बरु सभा चईठी ॥५ सभा सँवारि जो राउत, बइठ उहाँ पै जाइ।६ चारि खण्ड का नियाउ नियारहि, एकउ फरह न जाह ॥७ टिप्पणी-(१) गियान-ज्ञान 1 (७) नियाउ-न्याय । नियारहि-निर्णय करते है। एकड़--एक भी। फरद-यह शब्द भोजपुरीमें बहु प्रचलित है और कार्यरे शक्य अशरवे प्रसगमें प्रयुक्त होता है। यहाँ तात्पर्य 'वशके बाहर से है। ३७९ (मनेर :७ ) हर चहार क्स सलाम रोदन (चारों जनोंका प्रणाम करना) आइ चहूँ मिलि कीन्हि जुहारू । जूझ मरत हहिं करहु विचारू ॥१ योला सभा कहँहु दुन्हु आई । कहि लागि तुम्ह जूझहु भाई ॥२ .