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२८० दीपान्तर (हिन्द एशिया)के द्वीप-समूहों) के किसी द्वीपको पल्का रहते रहे हो । मल्यस्थित पेनागवा भी नाम पल्का हो सकता है। किन्तु जायसीने पल्कामें शिवका निवास बताया है । (२६६८३-४)। सम्भव है शिव निवास फैलाधरो पल्या कहते रहे हों। इस सम्बन्धमे दृष्टव्य है कि एलोराके कैलास मन्दिरके दोनों ओर जो गुपा-मण्डप हैं, उनमेंसे एक्को रुका और दूसरेको पल्का कहते हैं । (७) यादर-~यादल, आकाश, यहाँ तात्पर्य स्वर्गसे है। भुई- भूमि । ३५२ (रीलैण्ड्स २६०५ : यम्बई ४६ : मनेर ।६८) ऐजन (दही) संग न साथी में में रोवा । मीत जो होत' सो दई पिछोवा ॥१ आँस सायर भरा पटाई । नैनहिं पनड' रोइ बहाई ॥२ कर गहि' चाँद चाँद गुहरावइ । धुनि धुनि सीस नारि लावइ ॥३ उतर न देहि नारि मुख' बोवा । नाग उसे विस लहरें सोया ॥४, गाँउ ठाँउ होइ तहवाँ धाऊँ । विखम उचार गुनी कित पाऊँ ।५ माइ बाप कर दूलह, दुख न जान कस होड़ ६ • जो सर परा सो जाने, दुखी होय जनि कोइ ॥७ पाठान्तर-बम्पर और मनेर मति- शीर्षर-(२०) अपसोर व जारी गर्दन औरफ व तनहाई जुद आवद (लोरमा दुखी होकर रोना और अपने अपेले शेनेवी चर्चा परमा)। (म०) दर तनहायगी व गरीचिये सुद गुप्तन लोक (लोखका अपनी बेबसी और अलेपनमा उल्लेप करना)। १--(म०) होता । २-(म०) यनपढमें । ३-(म०) पर कर |४- (२०) पायद; (म०) धर धर सीस नार पाँ। ५--(२०) न देहि शोर मुंद, (म.) न दलोर मुंट् ॥६--(म०) गाँए । 0--(२०) लहर नहि (म.) हहरदि 10-(१०) विद। ९--(१०) परा तो जान्या (म०) ने सर परे तोहि सानसि।