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२७३ चलो सो बनखंड लोरक, बसेउ विपिन बन जाइ ६ पाकर रुख देख कर, सिंह तर रहे लुभाइ ॥७ ३४४ ॥ (रीलैण्ड्स २५९ वर्मा माँदने लोरर व चाँदा शब दर बयाॉ मार खुर्दने चॉदा रा जेरे दरख्त , (रात्रिके समय चाँद और लोरकका वृक्ष के नीचे रुकना और . चादको साँपका डॅसना) चलत चलत जो भइ गइ सॉझा । कीन्हि बसेरा बनखंड मॉझा ॥१ पाकर उस देखि छितनारी । तिहि वर घसे पुरुख औ नारी ॥२ जैइ मूंज सुख सेज डसाई । सूता सुरुज चॉद गिय लाई ॥३ अँथ जोन' भयउ अॅधियारा | पाछिल रात होत भिनसारा ॥४ तिहि खन पिसहरदीन्हि दिखाई। चॉदै इसिक' गयउ लुकाई ॥५ अस' सुकुमार लहर जो' आई, खात गयी मुरझाइ ।६ एक बोल पै बोलसि चाँदा, लोरहि सोवत जगाई॥७ पाठान्तर-बम्बई प्रति- शीर्षक-अज रफ्तने राह शय दर आमद व पुरुद आमदन्द । जेर दरख्त पाकर व मार कजीद चाँदा रा (मार्गमें रानि होजाने पर रुककर पाकडके वृक्ष के नीचे सो रहना और साँपका चाँदको डसना)।। १-अयं जोन्ह । २-मई! ३--चाँददि। ४-अति | ५---जो लहरेंहि । ६-खातहि । ७-एक बोल ३ बोली चाँद, सत पर जगाह । टिप्पणी-(१) बसेरा-निवास । माझा--मध्य, चीच ! (२) पाकर-पीपल्की आतिया एक वृक्ष । रख-वृक्ष । छितनारी- घना। (४) पाछिल-पिछला । भिनसारा-सुबह । (५) सन-क्षण, समय । विसहर-साँप | (६) मुकुवार-मुकुमार, कोमल । (७) लहर--विषका प्रभाव । (८) खात-साते हो (सर्पके विषसे प्रभावित होनेको 'लहर साना' १८