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२६९ दीन्हि सिंघासन औं तुरंगू । पंथ लाइ तुम्ह रायि करत ॥४ उतरे आई वॉभन के अासा । मॅगता मिलया आइ जिह पासा ॥५ पूनउँ रात सपूरन सूते, फुलहिं सेज निछाड '१६ थास लुबुध भुग एक आना, अउतहिं चॉदहिसाड ७ पाठान्तर-~मनेर प्रति- शीपक-अउ पदने लेरक राव रायाजी मदुम (रावर लारका निवदन) इस प्रतिम पत्ति ४ नहीं है। उस स्थानपर पाँचवा पत्ति है । पाचवा पति स्थानपर एक नयी पनि है। १-मुन्दु राउ।२-रहे चले सो बाँध तुम्हारा । ३-हमार3 | ४- राह उतर सुन बीरा दी हा । ५-सीम चढाइच लोक लहा। ६-- यह पत्ति नहीं है। ७~जाई। ८~~अपसा (लिपिक वार' के बाद 'अलिफ' लिम्वना भूल गया है।) ९---मॅगता आह मिठे जिह पासा । इसके आगे पाचरी पत्तिय रूपम नयी पात्त है- हि कनू हाय के देव । जस कीरत आपु कह लेइ ॥ १०-भइ । ११~अवनि सेज रिचाह । १२-10~~यास टुयुध भुनगन मानी, चादह साइ अघाइ । टिप्पणी-क्ति ४ और कटवय ३३१ की पति एक समान है । सम्भवत यह पुनरुक्ति लिपिकरे प्रभादवा परिणाम है । (मनर १६२ (२) ६) दासान बेहोश गुरने चाँदा मुनरदे खुदन मार (साँपके रटते ही चाँद का मछिन हा ना) डॅसतहि चॉद भई अँधियारी । नेग भरत निसँभर गइ गरी ११ खतरी साइ चला फुफकारी । लोर र सुनि लागि गुहारी ॥२ पेट पयान लोर कर गहा । तम टेकमि जम ठाउ न अहा ॥३ मार भुोंग लोर जो आगा| चाँद मुई लोरफ धारामा ।४ लोरक वॉभन सूत जगायउ । घर घर रहीं हि सायउ॥५ निकर सूर जब अॅथना, परा धरहिं पर सोक ६ तिरिया पुरस ऊपर कियो, तिह विधि दीन्ह विजोग ।।७