यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६६ वरह" विरोधै नरयइ, छाडि चलै घर चार ६ . हमरे अकेले दो मनई, न विचारी कुतवार" ॥७ पाटान्तरयम्बई और मनेर प्रति- शीर-(२०) गुप्तने जुनारदारान वर गेय व चाँदा अब रखान पदन पेशे राय (लोरय और चाँदसे ब्राह्मणोंवा रायके पास तत्वार चल्ने रहना) । (म०)-रपतने लोरक पीशे राय परवा (ोत्रा राय करयाये सम्मुरा जाना) टोनी प्रतियोंमे पति १ और २ क्रमशः २ और. १ ।। १--(२०) गै पुनि । २-(५०) आएन पा; (म०) आपुन पाउ । ३--(३०, म०) हम जियतें मन महें जिन हारतु । ४-(२०) लाई । --(१०) मॅजो, (म.)-सजोह । ६-(२०) जाद करवा राउ, (म०) गउ परका जाद जुहारा । ७-(३०, म०) भूपि । ८-(२०) ची, (म०) चलत। ९-१०) राइ सेउँ हम, (म०) रे सो हम। १०-(२०, म०) सताये। ११--(म०) दुह मडै एक दान रे राउ, (१०) हुँहु मह एक ले दान राऊ । १२-(व०म०) बीर । १३-- (म०) रोिध। १४--(१०) हभरे जकेले आह दो जन, भार वीर यरवार, (म०) हम जल दोह मानुस, बैरी मा ससार । रिप्पणी-(७) मनरं--मनुष्य, व्यक्ति । ३२९ (रेण्ड्म २५६ : यामई २९ : मनेर ।६२ (6) भ) जवान दादन राव भर लगेर ग (राघरा रोगको उत्तर) सुनि राजे अस उतर दीन्हा । जो हम यझी सो तुम कीन्हा॥ अजें कह मो पात कराऊँ । के मारी के सूर फिराऊ र सीम नाइ लोरहिं अस कहा । गरू नरिन्द राउते अहा ॥३ पेदिन फर्ह पड़ा हुँत राऊ । राइ हुत है बड़ा नियाऊ 8 तुम्ह नरवइ निपाउ सम जानहु । जोपुर करहिं देम धर आनह ।।१ मारग चले चहूँ दिसि, लोग अमीस तोहि ॥६ जो रे संतायइ कोड, सो हत्या पनि मोहि ॥