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३२२ (रीलैण्ड्स २४९ बाबई ४५ मनेर १५९ अ) गिरफ्तार शुदने विद्या व दस्त मुरीदने रक (विद्याका पकडा जाना और लोररका उसका हाथ काटना ) विद्यादान' जीत कर गहा' । दस अंगुरी मुख पेलत' अहा ॥१ कहा पीर मुँहि देहु जिउँ दानू । जीउ छाडि काटु मकु कानू' ॥२ [ड मॅडि सभ चोरे धरे । हाथ काट अंगुरा" मुँई परे ॥३ मौखंड प्रिथमी सुना" नकाऊ । अइस दान को दहि पटाऊँ ।।४ अस कहि दानि अन्यायी होई" । जो जस करै पाउ तस सोई" ॥५ मुँह कारा के विद्या," पठवा" बेल बधाई ६ आपुन राउ"करंका, विद्या बेग हँकार "जाइ ॥७ पाठान्तर-यम्बई और मनेर प्रति-- शीर्षक---(ब०) खुसूमत शुदन बाज गवातियान व लोरक बा चाँदा (ोरक और चाँदका दानियोकी मरम्मत करना), (म०) दास्तान इज्जो इलाज कर्दने बुदई पेशे कोरम (बुदईका लोरपसे अनुनय करना)। दोनों ही प्रतियोंम पत्ति ४ और ५ प्रमश ५ और ४ है। १-(4) विद्या लोर, (म०) धुदई जाइ। २-(म०) घर कहा। ३--(म.) दस ॲगुरी मुँह झेरत (१) । ४-(व०, म.) कहा । ५- (ब०) मुहि, (म०) मोहि । ६-(म०) दै। --(२०) जिय । ८- (ब०, म०) दायूँ । ९-(१०) पहा नाक औ काट कान, (म.) छादेऊनाक और बाटउँ कानूं । १०-(40) मुंह मॅडि सर जोरिया परी, (म०) मँड मुडाइ सर जोयें धरी। ११--(३० म०) अंगुरी। १२-(म०) परी। १३-(व०, म०) प्रियमों मुनाँ। १४-(०) देह, (म०) दई । १५--(म.) न पाऊ । १६-(५०) अस अन्याई दानि न होई, (म०) अइस दानि अन्याइ न होई । १७-(म.) होई। १८-ब०, म०) मुस कारी । १९-(२०) र।२०-(१०) बुदया, (म०) बुदई । २१-(म०) पैठि । २२-(म०) गह! २३-(म०) 'विद्या' शब्द नहीं है, (१०) बुदई । २४-(१०) बुलावहु । २५- (म०) लाइ जाइ। टिप्पणी-(१) जीत कर गहा-~'चेत कर रहा' पाठ भी सम्भव है। (४) प्रियमी-पृथिवी।