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___२५६ (५) फोर-पोहूँ। फारउँ-काहूँ। मूंड-सिर मुआदष्ट-- भुजदण्ड | तोरउँ-तो. । (७) फॉक-नुकील (देखिये टिप्पणी ११४१५)। ३१४ (रीरेण्ड्म २४४ . मनेर १५५) पन्दादने चाँदा लोरक रा व अन्दास्तने यावन तीरे मुअम (चाँदका रोरक्को सचेत करना और बावनका तीसरा तीर छोदना ) चाँद कहा अब देउर लीजइ । गाढ़े औखद हील न दीजई ॥१ दू सर गये रहा अब एकउ । लोर' चीर फैसों के टेकउ ॥२ सर मेलसि कस नियर मैं आवइ । जो आयइ तो जीउ गॅवावइ ॥३ जाइ देउल महें लोर सॅभारा । नॉघसि पान उठा झनकारा ॥४ पावन धान फूटा आई । मारसि देउर गयउ उड़ाई ॥५ वर पावन कर भागा', चाँद कहा विचार ६ बँथवा सुरुज बहुरि परगासा', जानइ सभ संसार" ॥७ पाठान्तर-मनेर प्रति- शार्प-दास्तान चॉद गुप्तने पनाह देवर पेपर आह लरक (चाँदवा रक्से देवल्का सहारा लेनको रहना) १-दील अदीजह । २-दो । ३-लोरय । ४-यह सर मे पुनि नियर न आवइ । ५गादे अवसर जो घात सचारू । गरजा देउर उठा झनयार ॥ ६-यावन तवही धनुग्प चदाई । ७-घर नहा, चाँद । ८-विचार रिचार । ९-अथवा मन मुरुज परगासा । १०-ससार । टिप्पणी-(१) देउर-देवल, मन्दिर । गाई-पटिन । आनद-समय । (२) कैम-रिसी प्रकार । (३) नियर-~-निकट | मैं नहीं । (४) देउल-देवल, मन्दिर।