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दसरे संस्करणमे पाँचों अनुक्रमणिकाके रूपमें काय अन्योको एक विस्तृत सूची दी हुई है। उसमे भी उपयुक्त ग्रन्थकी चर्चा है, पर सर्वथा भिन्न रूपमें । उसका अग्रेजी रूम इस प्रकार है :- चन्दा ओ हुरक (द रोमान्स आव) आर द पैटेस आव द पेरी लेक- मैनुलिप्ट इन घाटों, विध कलडं डाइग्स, हिच पारमरली बिलाड टु द राइब्रेरी आव द ड्यूक आप ससेक्स एण्ड देन टु दैट आव एन० ब्रान्द । आई हैव रेड एण्ड ट्रान्सलेटेड द टाइटिल एज एवव विध एफ० पाल्कनर, हू हैज चैयरपुली एक्जामिण्ड दिस वर्क । इट इज हाउ एवर गिवन इन द 'जनरल पेटलॉग' आव आगरा अण्डर द राइटिल 'द रोमान्स आव जण्डाल थार द फेरी पैलेस भाव द लेक ।' अकार्डिग टु द टाइटिल गिवन टु इट इन द मैन्युलिप्ट इन क्वेश्चन, अ रीडिंग आई हैव पालोड माईसेल इन द पट एडोशन आव दिस वर्क । __ अर्थात्--चन्दा और हुरककी प्रेम कथा अथवा परी शोल्का महल । रंगीन चित्रों से युक्त चौपर्ता हस्तलिखित ग्रन्थ, जो पहले ड्यूफ आव ससेक्स के पुस्तकालय. में था और पधात् एन० कान्द के । मैंने उसके शीर्पकको एफ० पाल्कनरकी सहायतासे, जिन्होंने इस ग्रन्थका ध्यानपूर्वक परीक्षण किया है, उपर्युक्त रूपमें पदा और अनुवाद किया है। किन्तु आगराको 'सामान्य सूची में उसका उल्लेख 'जडाल्की प्रेम कथा अथवा झोलका परी महल'के रूपमें हुआ है। प्रस्तुत हस्त- लिखित ग्रन्थमे जो शीर्षक दिया है उसको मैंने इस प्रन्यके प्रथम सस्करणमें अपनाया था। उपर्युक्त दोनों ही अवतरणोंको सामान्य दृष्टिसे देसनेसे यह पता नहीं चलता कि तासीने चन्दायनकी किसी प्रतिका उल्लेख किया है। किन्तु दूसरे अवतरणमे पुस्तकके शीर्षक चन्दा और हुरककी प्रेम कथाका उल्लेख इसकी ओर स्पष्ट समेत करता है। पारसीमें लिखित चांदाको जाँदक और लोरफका हुरक पद लेना कठिन नहीं है । अस्तु, मुझे समझते देरन ल्गो कि पुस्तक लौरफ और चन्दाकी प्रेम कहानीसे ही सम्बन्ध रखती है। इस प्रकार कमल कुलश्रेष्ठका उल्लेस मेरे लिए बहुमूल्य सिद्ध हुआ। तासी द्वारा प्रस्तुत इस सूचनाके सामने आते ही मैं उनके द्वारा देखी गयी इस हस्तलिखित प्रतिका पता लगानेमे सचेष्ट हुआ। देखा जाता है कि यूरोपमें जर कोई क्ला अथवा पुस्तक प्रेमी मरता है तो उसरे उत्तराधिकारी मृत्यु पर चुकानेके लिए प्रायः उसके बल अथवा पुस्तफ्सग्रहको ही बेचा करते है । अतः मैंने अनुमान किया कि इयूक आव ससेक्सके पुस्तकालयकी भी यही गति हुई होगी। इस दृष्टिको सामने रसपर मैने सोज प्रारम्भ की। शात हुआ कि ड्यूक आव ससेक्सका उक पुस्तकालय १८४४ ई. में विका था और उसे लन्दनरे मुप्रसिद्ध पुस्तक विक्रेता लिलीने १ खण्ड ३, पृ० ४३१-४३२ ।