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२४८ बारह मंदिर रैन ॲधावसि । सूरुज सेज उजियारी रावसि ॥४ तज सोक औ रहइ लुभाई। कहउँ यात तूं खिनन [ल*]जाई ॥५ दान सड़ग कर निरमल, लोरक भाई हमार ६ तोर नीलज अमावस, करि जो लिन्हि अँधियारे॥७ मूटपाट-(२) मुग्य वारी मुस निसि । पाटान्तर-मनेर प्रति- शीर्ष-मलामत पर्दने कँवरू चाँटा रा (क्वरूका चाँदकी भत्र्सना करना)। १-धर उतरि । २–मुसकारी पगरहि तिह कुवारी । ३-पास पार दिन होद । ४-रहसि नहि चाँदा । -अस विह होइ गोवर के जाई। ६-रैन तूं धावसि । ७-~-अँधियारे राबसि । -तज जो सोक मरहि रजाई । ९--अन होइ तो मरै लजाई। १०--तू तो मने अस निलज, अमावस के अँधियार। टिप्पणी-(१) हती थी। (.) अस-ऐसा। २९८ (रीरेण्ड्स २३३) पिदाअ कर्दने लोरक या कुँवरू व पीन्तर रफ्तन (लोरा यरुको विदा कर आगे पढ़ना) धरि कॅवरू लोरक कॅठलावा । नैन नीर भरि गॉग यहावा ॥१ केम छोर कँवरू पॉयन परा । विरह दगध घायर जनु ररा ॥३ देसतहिं चॉदा चितहि सँसानी । मकु न लोर छाई लोरकानी ॥३ कातिक मास सेल रितु गाई । हम पुनि कुँवरू सेलत आई ॥४ ठाड़े कुँवरू सिर दइ हाथा । जान देइ चॉद संघाता ॥५ __माइ सोलिन आ मैनॉ, कहु सँदेस अस जाइ ।६ यहेर जान न पानइ मॉजरि, रहे सोलिन के पाइ ॥७ टिप्पणी-(१) कटरावा-गले लगाया । (२) घायर-घायल । रा-चिलाया ।