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सरद सिसिर रितु हेवन्त, जात न लागे बार ६ चलप चॉद कहु बिहफइ, होइ वसन्त उजियार ||७ टिप्पा -(२) दइउ-देव, बादल । (३) नार--नारा, खोर--सोह। (७) चलब-चढूँगा । बिहफइ-'भीपई' पाठ भी सम्भव है । दोनो हो बिरस्पत (बृहस्पति) वे देशज रूप है । २८१ (रीलैण्ड्स २२५) तहपीम पदने बिरस्पत मर लारक रा (यिरस्पतका लोरकको समझाना) विहफइ आइ लोर समुझावा । चेर चाँद जिउ कोप उचाया ॥१ छाड़ गोवर अइस बहराउच । वरु जिउ जाइ फुनि गोंइ [न*]आउन॥२ मैं आपुन जिंउ अस वरझेवा । रात देवस कहँ यस्मी देवा ॥३ पित केर देसि पोसाऊ । हाथ ऊभि भुइँ परै न पाऊ ॥४ घरु गहि पानि अगका कहिये । जइस पर सर तइन सहिये ॥५ कहा तोर सुनु बिहफइ, हो तो रासि गुनाउँ ।६ काल धरौं लै पानत, तो हौं चॉद बुलाउँ॥७ टिप्पणी-(१) येर-बिलम्य । (२) अहम-~-दस प्रसार । बहराउप-पाहर निसलूंगा। गोह-गॉवकी सीमा | भाउप-आउँगा। (५) पानि-पाणि, हाथ । जइम-जैगा । परह-पड़े। तहम-तैसा । (७) काल-बल | ध रयुगा । २८२-२८६ (अनुपलब्ध)