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२३८ २७७ (सैलेण्ड्स २२१) पुरसीदने महरि मर गुल्परोश रा व बाज नमूदने गुल्परोश इतावे चाँद (महरिका मालिनसे पूछना और मालिनका चाँदनी शिवायत कहना) महरि कहा सुन मालिन माई । अइस तें सुना तइस कहु आई ॥१ काल्हि जो चाँद देउ घर गई । देउ दुआर वितारन भई ॥२ चार भुवन जगजातहिं आवा । कुछ आपन औ बहुल परावा ॥३ चॉद न आछी अपनें पानी । बिन बानी अति जीभसुखानी ॥४ घर घर वात देस पहिराई । कारिक दयी मुँह निकर न जाई ।।५ तो राजा के धिय सो, चाँदा कसें लोक हँसावसि ॥६ औ जो पुरसा सात गये सरग, तूं तिहँ लजावसि ॥७ टिप्पणी--(२) काहिल । पितारन---वितण्डा । (३) जातहि-याना निमित्त । मापन--अपने, स्वजन । () कारित-पालिस, पालिमा । २७८ (रोलैण्ड्स २२२) दाभिन्दा शुदने महरि पला अज देताये नाँदा (चाँदनी नादानी पर पृग महरि रजित होना) सुनतहि फूला महरि लजानी । घरे सहज अनु मेला पानी ॥१ जम तुमार पुरई दह दही । तस होइ महरि बात सुन रही ॥२ कीन भाँत पर गयइ युलाई । इहँ कुरयोरन लाजि गॅवाई ॥३ काहे यह विध ते आतारी । पर औतरतं मरतेउँ पारी ॥४ अन ओरहन दुनि कैम मह । जहाँ चियाही तिहि का कहे ॥५ दोइ कुरबोरन, अगरन लोग हँसावनहार ६ पात लाग कह मालिन, हरखी आह छिनार ॥७