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____२३३ टिप्पणी-(१) फिरिहिरी-चकर काया । संवरी--सपरी, मछली । (३) यनहारा-रतन ! (७) केतस-किनने हो । परान-पलान, पलायन किया, भाग खडे २६८ (रीलैण्ड्स २१२) दर वन लाल शुदन चॉदा व मैना व हजीमत नमी खुदन (रक्तरजित होजाने पर भी चाँद मैनाका पराजित न होना) मिलन काम दोऊ बर जरे । जनु गीर मत ऊभरै ॥१ दोऊ नारि ऊभरै सथूला । नख अंग जनु टेसू फूला ॥२ उभै करहिं हाथापाहीं । थन उघार तन हाँकहि नाही ॥३ मरन सहि सो तरुनिहि रीसा | चीर न सॅभारहिं भूगर केसा ॥४ मुँह न बोल उत्तर न देहैं । सीस नॉग जनु भू दइ ली है ॥५ आइ बहुरि भू लागी, दुहु महँ हार न कोई ।६ लोखंचार विसरिंगा, मँदिर वितारह होइ ॥७ टिप्पणी-(३) थन-स्तन । उधार-मगा, वहीन । (७) लोखंचार-लोक आचार । वितारह-वितण्डा, झगडा, मारपीट । २६९ (रेण्ड्स २१३) गुरीख्तन बुत अज बुतपान अज जग अशियान (मन्दिरके भीतर युद्ध देस देवनारी परेशानी) शैदर अन्दर भनि मिल गया । देउहि जीकर मॉमन भगवे ॥? देउघर रफत भयउ सन लोही । हिये लागि डरभराँहि न मोही ॥२ देउ कहैं विध मै न बुलायीं । इदरसभा के अछरहि आयी ॥३ अर जो दुहुँ मँह एको मरी । इंदर राय महँ जिउ कह धरी ॥४ चला देउ ह्त्या महि लागी । छाडि मँदिर निसरा डर भागी ॥५