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२२३ बहिर कैचाँद चउँ दिमि दीठी | जनु तरई चहुँ पास बईठी ॥२ नहाइ धोइ के चीर पहिराबा । अगर चॅदन लाइ सीस गुंधावा ॥३ सेंदुर छिड़क भई रतनारी । मुँह तँवोल सब जानन बारी ॥४ इँदर सनद पंच तूर वजायी । गरह नसत चलि को कित आयी ।।५ सोन सिंघासन बहठी, बहुकन कियउ सवार ।६ चॉद वरायीं सेतै, गवनी देउ दुआर ७ टिप्पणी-(५) इँदर सबद-इन्द्र के असाडेमे अप्सराओंचे नृत्यके समय बजनेवाले वीणा, येणु, मृदग, कॉस्य ताल आदि याद्य । पचतूर--पालि साहित्य मे पचगिक तुरियका उल्लेरा पाया जाता है। मध्यकालीन ताम्रशासनोम पशब्द जौर पचमहाशब्द पाये जाते है जिससे ऐसा जान पडता है कि उसका उपयोग कुछ विशिष्ट सामन्त ही कह सकते है। डास्टर अलेकर मतानुसार शृग, रास, भेरी, जयघण्ट, तमद, ये पॉच वाद्य पचमहाशब्द कहे जाते थे (राष्ट्रकुट, पृ० २६३)। सम्भवत पचन्दका पचतूर भी रहते थे। किन्तु वासुदेवदारण अप्रवालका अनुमान है कि पचतूर नौरतके लिए प्राचीन मान्द है। (६) सिंघासन-विशेष प्रकारखी पाल्पी । 'मुसासन' पाठ भी सम्भव है। 'मुसासन' पाठ माताप्रसाद गुप्तने पदमावत (६१२१३) में स्वीकार किया है। तदनुसार हमने भी यही पाठ ग्रहण किया था और कडवक ७० और १ मे यही पाठ दिया भी है। पर वासुदेवदारण अमवाल्ने इस बातकी ओर ध्यान आकृष्ट किया कि आइने अकबरी (लासमैन कृत अनुवाद, पृ० २६४) में अबुल पल्ने पाल्मी, सिंघासन, चौडोल और डोली चार प्रसाररे यानाका उल्लेख किया है जिन्हें यहार (पालकीरदार) पन्येपर उटायर चल्वे थे। अत हमने यहाँ और आगे सर्वत्र 'सिंघायन' शठ स्वीकार दिया है। पाठक पीछे इस पाठको सुधार लें। पाल्पी अर्थम मुग्यासनमा कहीं उल्लेख नहा मिलता । बहुरुन-बहुतोंरो। (७) सते-महित ।