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सीरीजका नाम दिया है। पलतः कला भग्नराले चित भी लोर-चन्दा सीरीज के दूसरे नमूने रूपमे स्वीकार किये गये। रामपुर, काशी और पापको इन तीन प्रतिशे के अतिरित एक चौथी प्रति की जानकारी १९५३ ५४ ई० में हुई। पटना कालेज के इतिहास के प्राध्यापक संगद हसन असकरी इतिहासके विद्वान होनेके अतिरिक्त उर्दू हिन्दी मारित्वके प्रति भी रुचि रमले हैं और प्राचीन हस्तलिग्विन अन्यों की गोज उनका पसन है। अपने इस रमनने परिणाम स्वरूप उन्हें अनेक महत्वपूर्ण मन्योंगो प्रयाश गनेका श्रेय प्राप्त है। उस घर्ष मनेरसरोपके खानकाहफे सजादनशीन और उनके भाई मोलगी मुरादुल्लाके पुराने अन्योंके वस्तीको टटोलते हुए उन्हें चन्दायन के ६४ पृटावी एक सण्डित प्रति मिलगे। ये उस समर पेवल इतना ही जान सके कि वह हिन्दीस कोई अज्ञान अन्य है। मपोगसे वासुदेवशरण अग्रवाल उन्दी दिनों पटना गये ! असकरीने उन्हें यह अन्य दिखाया। तब सूमपरीक्षण करनेपर ज्ञात हुआ कि वे चन्दायन के ही पृष्ट है। तदनन्तर अमकरीने इस प्रति के सम्पन्न अग्रेजी और उके पत्री पई लेख प्रकाशित किये। इस प्रतिये शात होने कारण ही धन्दायनको एक अन्य प्रतिका पता चला। यह पनि भी राडित है। इसमें भी ६४ १४ हैं: किन्तु इस प्रविसी विशेषता यह है कि उसके पृष्ठ चित्रित है। काशी और पजाववाली प्रतियोंकी तरह ही इनके एक और चित्र और दूसरी ओर पारसी लिपिम आलेप है। यह प्रति भोपालो एक मुस्लिम परिवारमें थी। उसके स्वामी चिोरे कारण उसे मूल्यवान तो समझते थे, पर वे चित्र वस्तुतः क्या है, इसका उन्हें कुछ पता न था । १९५४ ई० में जर भारतीय पुरातत्व विभागके अरबी-फारसी अभिलेखोके विशेषम जियाउद्दीन अहमद देसाई मोगल गये तो उन्हें यह चित्राधार दिखारा गया। देसाई उन्हीं दिनों पटना होकर आये थे और असकरीने उन्हे अपनी चन्दायनकी प्रति दिखायी थी। अतः उन्हें भोपालनाली प्रतिको उल्टने पुलटते हुए यह समझनेमें देर न लगी कि वह भी चन्दायनकी ही प्रति है । तर चन्दायनरी सचित्र प्रतिके रूपमें उसका महत्व बढ गया और उसे १९५७ ई. में बम्बई प्रिन्स आव वेल्स म्यूनिश्मने क्रय कर लिया। ___ काशीवाने पृष्ठ मेरे शोधसे प्रकाशमें आये, यह ऊपर कहा जा चुका है। भोपालचाली प्रति उस समहालपमें है, जहाँ में काम करता हूँ। अतः इन दोनों ही प्रतियोंपर काम करनेका अधिकार मेरा था ही। मनेरशरीफ वाली प्रतिका विवरण असकरी पहले ही प्रकाशित पर चुके थे। उनकी प्रतिके उपयोग करने में कोई वाधा थी ही नहीं । पलत इन प्रतियों के आधारपर चन्दायनरी प्रस्तुत करनेका कार्य मैंने आरम्भ पिया। १. मार्ग, कर्मा, भाग ४, ३, ४० २४ । २. करेष्ट सदीन, पटना काले, १९५५९०,०६-१२ पटना युनवनिंग जर्नल, १९६० १. १६७१, मनासिर, पटना, अप्रैल १९६० ६०, १६, १०६४-१४ ।