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१९६ (२) पोसाउ-पुरुषार्थ । मेलसि-पेका । रोपि-अड़ा करके। (४) झाँखा-झॉक कर देसना । तर (तल)नीचे। (५) जें जेंउँ-ज्यो ज्यो । २०२ (रीलैण्ड्स १५८ : काशी) अपमोस क्दने चाँदा अज याज गुजारतने कमन्द (चाँदका कमन्द छोड़ देने पर खेद) चाँद कहा अब लोरक जाइह । मन उतरें फुनि बहुरि न आइह ॥१ हो अस वोलेउँ चतुर सयानी । बरहा छाड़उँ कवन अयानी ॥२ हाथ क माँग समुंद मँह जाई । बहुरि सो हाथ न चढ़ आई ॥३ कइ औगुन सैंसाने के तोरा । परा यरह युधि हीन छोरा ॥४ दई ठाउँ जो मॉगा पाऊँ । मेलि परह खॉभ लै लाऊँ ॥५ दई विधाता विनवों, सीस नाइ कर जोरि ६ परा फाँद बन मोरे, जाइ बरह जनि तोरि ।।७ पाटान्तरकाशी प्रति- शीर्षक रीटेण्ट्स प्रतिके समान ही: पेवल "अज बाज" शब्द नहीं है । १- अन्तिम दो शन्द कुछ भिन्न है, जो पहें नहीं जाते । २-दान्द भिन्न है, जो पढ़ा नहीं जाता। ३-चढै न । ४-८. आगुन से में गुन तारा । ५–'परह' शब्द नहीं है । ६-पंक्ति ६-७ अपार हैं। टिप्पणी-(१) जाइह-गगा । आइह-आयेगा । (२) अपानी-अज्ञानी। २०३ (हेण्डम् १५९) वमन्द अन्दाख्तने लोरक व रिहा कर्दने चाँदा यसन्न (लोररमा कमन्द फेम्ना गार घाँदका उसे गम्भमे बाँधना) चेर भवा बरु घरह फिर आवा । तस मेलमि जस नछत तनावा ॥१ परा घरह (तो) चाँदा धाई । अंकुरी मंदिर साँभ ले लाई ॥२