पुरुद आमदने चॉदा अज कस्र व पिरस्तादने बिरस्पत रा वर लोरक (चाँदका बिरस्पतको लोरककै पाम भजना) उतरी चॉद पइठि यतसारा । अदनल भानु कीस उजियारा ॥१ चली बिरस्पत चॅमाइ बॉहा । दण्डाकारन चीजु पनाहाँ ॥२ जाइ तुलानि वीर के बासा । सीह सिंदूर फिरहिं जिहि पासा ॥३ देसा लोर निरस्पत आई । नैन रकत भर नदी बहाई ॥४ बिरस्पत तोर पन्य हो जोउँ । सिन एक रात देवस न सोऊँ ॥५ कहु सँदेस जिहँ पठये, कउन जनाई बात ।६ कार रात वन अँधियार, औ हा चॉद चाँद चिल्लात ॥७ टिप्पणी--(१) पटि-सी । बतयारा-बैठकखाना । कोस-रिया। (३) सीह सिंदूर-दजिये टिप्पणी १२८१५ (६) जनाई सूचित रिया। १९७ (रीलैण्डस १५३) गुफ्तन बिरस्पत मर [ लोरक] (विरस्पतका उत्तर) तोरे पीर लोर हो पीरी । पान न सायउँ एकउ चीरी ॥१ अब म तोकह गुना विराजा । हिरदें रैन मंत्र एक साजा ॥२ पर यन्य तिहि जाइ न जाइ । वारक होतेउ लेतेउँ लुकाई ॥३ उतरु बीर जो उतर पावसु । सरग पन्थ जो चढत सॅभारसु ॥४ कै कारन हनुवेत वर यॉघउ । के कर लाइ पंसि सर साधउ ॥५ गिरै फाँस वर मेलसि, चोर सरग चढ़ जास।६ गरे चॉद रव भोजमि, वहिं तस सरग पास ॥७ टिप्पणी-(१) पीर-दु स । पोरी-दुखित 1 बोरी-पानका बीडा । (२) ताकह-तुमको । (३) यारकचालक। लेते-ल्ती ।। १३
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